अजीबोगरीब बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देव ने अपने विरोधियों की बग़ावत से निपटने के लिए नायाब राजनीतिक दांव चला। नायाब इसलिए क्योंकि भारत की राजनीति में इससे पहले ऐसा नहीं सुना गया था। देब को त्रिपुरा बीजेपी के अंदर लंबे वक़्त से बग़ावत का सामना करना पड़ रहा है और यह बात पार्टी अलाकमान तक भी पहुंच चुकी है।
अक्टूबर में देब से नाराज कुछ बीजेपी विधायक दिल्ली आए थे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले थे। इसके बाद उन्होंने महासचिव (संगठन) बीएल संतोष से भी मुलाक़ात की थी।
बिप्लब के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी
मंगलवार को देब को उस वक़्त मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जब बीजेपी के प्रभारी विनोद सोनकर त्रिपुरा पहुंचे थे। सोनकर असंतुष्टों से मिलने और ज़मीनी हालात की जानकारी लेने के लिए ही त्रिपुरा के दौरे पर आए थे। लेकिन गेस्ट हाउस में जहां वह रुके थे, बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने ‘बिप्लब हटाओ, बीजेपी बचाओ’ कहकर नारेबाज़ी शुरू कर दी। असंतुष्टों ने ऐसा सिर्फ़ इसलिए किया था कि वह सोनकर के जरिये अपनी बात को बीजेपी आलाकमान तक पहुंचा सकें।
बिप्लब ने इस मौक़े पर चतुराई से काम लिया और यह एलान कर दिया कि वह 13 दिसंबर को अगरतला के अस्तबल मैदान में लोगों को बुलाकर उनसे पूछेंगे कि उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर बने रहना चाहिए या नहीं।
बिप्लब ने कहा था कि वह लोगों के मुंह से यह सुनना चाहते हैं कि क्या वे उन्हें कुर्सी से हटाना चाहते हैं। मुख्यमंत्री ने सभी लोगों से मैदान में आने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था कि वह राज्य के 37 लाख लोगों से इस बात को पूछना चाहते हैं। इस राजनीतिक दांव को एक तरह का ‘रेफ़रेंडम’ माना गया।
लोगों को मैदान में बुलाकर बाग़ियों के सियासी तीरों से परेशान बिप्लब बीजेपी आलाकमान को अपनी सियासी ताक़त दिखाना चाहते थे।
नड्डा ने की देब से बात
लेकिन बीजेपी आलाकमान इस मामले में बीच में आया है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ख़ुद देब से बात की। इसके बाद देब ने बुधवार को 13 दिसंबर के कार्यक्रम को निरस्त कर दिया। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, प्रदेश प्रभारी विनोद सोनकर ने कहा, ‘बातचीत के बाद यह फ़ैसला लिया गया है कि देब ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं करेंगे। उनके नेतृत्व को कोई ख़तरा नहीं है और वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे।’ आलाकमान इस बात की जांच करा रहा है कि आख़िर वे कौन लोग थे जिन्होंने देब के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की।
त्रिपुरा को लेकर बीजेपी आलाकमान बेहद संजीदा है क्योंकि राज्य में 25 साल पुराने वाम दलों के शासन को उखाड़कर उसने 2018 में अपनी सरकार बनाई थी।
‘बाहरी’ हैं ज़्यादा असंतुष्ट
बिप्लब से असंतुष्ट नेताओं का दावा है कि उनके पास 60 सदस्यों वाली विधानसभा में 25 विधायकों का समर्थन हासिल है। यहां पर मुश्किलें बीजेपी आलाकमान के सामने भी ज़्यादा हैं क्योंकि बाग़ियों की संख्या ज़्यादा है। असंतुष्टों में से ज़्यादातर नेता ऐसे हैं, जो 2018 में पार्टी में शामिल हुए हैं। इनमें से अधिकतर नेता कांग्रेस या तृणमूल कांग्रेस से आए हैं।
बिप्लब को पार्टी के नेता और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सुदीप रॉय बर्मन से चुनौती मिल रही है। सुदीप रॉय बर्मन 2016 में कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में गए थे और उसके बाद 2018 में बीजेपी में चले गए थे।
यहां पर बिप्लब के राजनीतिक कौशल की परीक्षा है। बीजेपी आलाकमान बाहर से पार्टी में आए नेताओं की ख़ातिर निश्चित रूप से बिप्लब के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करेगा लेकिन बग़ावत के हालात में पार्टी को विधानसभा में बहुमत साबित करना मुश्किल हो जाएगा।
त्रिपुरा की सत्ता में बीजेपी का इंडिजनस पीपल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफ़टी) के साथ गठबंधन है और दोनों ने मिलकर विधानसभा चुनाव में 44 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसमें बीजेपी को 36 और आईपीएफ़टी को 8 सीट मिली थीं।
विवादित बयान देने के आदी!
इस साल जुलाई महीने में बिप्लब देव तब विवादों में घिर गए थे जब उन्होंने यह बयान दे दिया था कि पंजाबी और जाट ताक़तवर होते हैं लेकिन उनके पास दिमाग़ कम होता है। बयान पर बवाल होने के बाद उन्होंने माफी मांग ली थी। इससे पहले देब ने कहा था कि महाभारत काल में इंटरनेट और सैटेलाइट का इस्तेमाल होता था। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने ये भी कह दिया था कि बेरोज़गारों को पान की दुकान खोल लेनी चाहिए और गाय पालनी चाहिए। ऐसा लगता है कि वह चर्चा में रहने के लिए इस तरह के बयान देते हैं।
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