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तेलंगाना आंदोलन के नेता की कुर्सी ख़तरे में?

शुक्रवार को तेलंगाना में पड़ने वाले वोट से यह साफ़ हो सकेगा कि लोग सरकार के कामकाज के बारे में क्या सोचते हैं और तेलंगाना अस्मिता और आंध्र विरोधी भावनाएं उनकी राजनीतिक पसंद को किस तरह प्रभावित करती हैं।राज्य की लगभग 2.80 करोड़ जनता को यह चुनना है कि वह 119 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति को एक बार फिर मौका देगी या कांग्रेस की अगुवाई वाले पीपल्स फ़्रंट को शासन की बागडोर सौंपेगी। पीपल्स फ़्रंट में कांग्रेस के साथ सीपीआई, तेलगु देशम पार्टी और तेंलगाना जन समिति (टीजेएस) हैं। टीजेएस के प्रमुख एम कोन्डादरम मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के दोस्त रहे हैं और अलग राज्य के लिए हुए आंदोलन में उनके साथ थे। समय से पहले विधानसभा भंग करने की सिफ़ारिश कर मुख्यमंत्री राव ने एक ज़बरदस्त चाल चली थी, इसे आप ‘मास्टर स्ट्रोक’ कह सकते हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में बिखराव था और सत्तारूढ़ टीआरएस को बीते साढ़े चार साल के अपने कामकाज पर भरोसा था। लेकिन कांग्रेस और तेलुगु देशम ने हाथ मिला कर उनके प्लान की हवा निकाल दी और मुक़ाबला अब काँटे का हो गया है।

वंशवाद का आरोप

पिछले विधानसभा चुनावों में टीआरएस को 191 में से 63 सीटें मिली थीं और लगभग 33 फ़ीसद जनता ने इसे अपना वोट दिया था। पर जैसे-जैसे समय बीतता गया, लोगों ने पार्टी से कामकाज का हिसाब माँगना शुरू किया। इसके पास ठोस जवाब नहीं था क्योंकि अलग राज्य बनने के बाद लोगों ने विकास की जिस रफ़्तार की उम्मीद की थी, वह नहीं दिखी। बेटे, भतीजे और बेटी के सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप और पार्टी चलाने के रवैए से इस पर ‘वंशवाद’ का आरोप भी लगा। अब तक पार्टी यह आरोप कांग्रेस पर लगाती थी। इसके नए घोषणा पत्र में तमाम तरह के वायदे किए गए हैं। पर लोगों की नाराज़गी कायम है।
सत्तारूढ़ पार्टी ने तेलंगाना अस्मिता का मुद्दा उठाया है और कांग्रेस-टीडीपी पर अलग राज्य के आंदोलन का विरोध करने का आरोप लगाया है। पर राज्य बनने का साढ़े चार साल बाद लोग विकास पर सवाल कर रहे हैं, टीआरएस के पास ठोस जवाब नहीं है।
विकास के मुद्दे पर घिरती टीआरएस ने एक बार फिर फिर तेलंगाना अस्मिता का नारा दिया है। इसने अलग राज्य के लिए हुए आंदोलन के दौरान कांग्रेस के रवैए को एक बार फिर उठाया। पर इस बार जवाब कांग्रेस को नहीं, इसे देना है। सत्ता में यह पार्टी थी।

परेशान केसीआर

टीआरएस सरकार विरोधी भावनाओं से इस तरह परेशान है कि बीते दिनों केसीआर की कुंठा बाहर आ गई। उन्होंने कह दिया, ‘लोगों ने यदि कांग्रेस को चुना तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। मैं अपने खेत लौट जाऊंगा, आराम करूंगा। पर लोगों को सोचना चाहिए कि अलग राज्य पर इसका क्या रवैया था।’इसी मुद्दे पर उन्होंने टीडीपी को भी घेरने की कोशिश की और उसे खुले आम तेलंगाना विरोधी क़रार दिया। केसीआर ने कहा, ‘यदि पीपल्स फ़्रंट जीतता है तो राज्य दिल्ली का ग़ुलाम हो जाएगा।’   

कांग्रेस की रणनीति

कांग्रेस को बीते चुनाव में 21 सीटें मिली थीं और 24 प्रतिशट वोट मिले थे। लेकिन टीडीपी (पिछला वोट शेयर 15%) से उसने इस बार हाथ इस उम्मीद में मिलाया है कि दोनों मिल कर (24+15=39%) टीआरएस के रथ को रोक सकेंगे। टीआरएस को पिछले चुनावों में 34% वोट ही मिले थे। कांग्रेस-टीडीपी गठबंधन के बाद टीआरएस ने AIMIM से अघोषित गठजोड़ किया है और AIMIM ने उसके लिए 12 सीटें छोड़ दी हैं जहाँ उसने पिछली बार चुनाव लड़ा था। वह केवल 8 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। AIMIM को पिछली बार क़रीब 4% वोट मिले थे। डील यह है कि जिन सीटों पर AIMIM का प्रभाव है, वहाँ वह टीआरएस को जिताने का काम करे।
Will Telangana pride salvage TRS? - Satya Hindi

टीडीपी की रणनीति

लगभग चार साल तक बीजेपी के साथ रहने और केंद्र में सत्ता का सुख भोगने के बाद टीडीपी ने उसे झटका दिया क्योंकि आंध्र मे वाइएसआर कांग्रेस विशेष राज्य के मुद्दे पर काफ़ी समर्थन बटोर रही थी और केंद्र सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी। टीडीपी की यह रणनीति भी थी कि वह सांप्रदायिकता के नाम पर बीजेपी का विरोध करेगी तो मुसलमानों के बीच एक संकेत दे पाएगी। यह तबक़ा उससे नाराज़ चल रहा था। 
टी़डीपी की रणनीति यह है कि वह बीजेपी का विरोध कर तेलंगाना ही नहीं, आंध्र प्रदेश में भी मुसलमानों के नज़दीक जाए, उसका फ़ायदा आम चुनाव में ले। साथ ही वह आम चुनावों के बाद बनने वाले समीकरण में भी अपना हिस्सा माँग सके।
टीआरएस ने तेलगु देशम पार्टी को बीते चुनाव में अलग राज्य आंदोलन के ‘विलन’ के रूप में पेश किया था। पर तब से अब तक गोदावरी में काफ़ी पानी बह चुका है। बदली हुई स्थितियों में वह कांग्रेस के साथ मिल कर विकल्प देने की स्थिति में तो है ही, बीजेपी का साथ छोड़ एक संकेत भी दे रही है। कांग्रेस ने अपने टूटते क़िले को किसी तरह संभाला, विद्रोह को रोका, ज़्यादातर नए लोगों को टिकट दिया और पूरे देश में विकल्प देने वाली पार्टी के रूप में उभरने की कोशिश की। इसका फ़ायदा उसका हाथ थामने वाले सभी दलों को हो सकता है।

बीजेपी की नज़र कहीं और

बीजेपी को यहाँ खोने को बहुत कुछ नहीं है। बीते चुनाव में इसे 7 प्रतिशत वोट मिले थे और यह 5 सीटें जीत पाई थी। पर पूरे देश में कांग्रेस को हराने की उसकी रणनीति का एक अहम हिस्सा यह राज्य है। यहाँ पीपल्स फ़्रंट की जीत शेष देश में कांग्रेस की विश्वसनीयता बढ़ाएगी। बीजेपी को ऐसा होने से रोकना है।
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देश के दूसरे हिस्सों में मुसलमानों के रहनुमा बनने के लिए असदउद्दीन ओवैसी को पहले तेलंगाना में ज़्यादा सफल दिखना होगा।
AIMIM के नेता असदउद्दीन ओवैसी अपनी फ़ायरब्रांड छवि के लिए देश में जाने जाते हैं। उन्हें यह साबित करना होगा कि अपने मूल राज्य में वे पहले से ज़्यादा मजबूत हैं। इसके बाद ही वे शेष देश में मुसलमानों के पैरोकार होने की बात कर सकेंगे। केसीआर ने जिस तरह राहुल गाँधी पर ज़बरदस्त हमला बोला और नरेंद्र मोदी की तारीफ़ की, उससे यह भी दिखता है कि कांग्रेस को रोकने के लिए ज़रूरत पड़ने पर बीजेपी उसका साथ दे सकती है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में पहले टीआरस को पीछे दिखाया गया था, पर बाद में उसकी स्थिति सुधरी। पिछले सर्वेक्षणों में इसके संकेत उभरे थे कि टीआरएस अपना क़िला बचा लेगी। बीते बार अलग राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने के बावजूद TRS को सिर्फ़ 63 सीटें मिली थीं, यानी बहुमत से सिर्फ 3 सीट ज़्यादा। इसलिए वोट प्रतिशत थोड़ा भी गिरा तो उसकी दिक्क़तें बढ़ेंगी। आज शाम को एग्ज़िट पोल में कुछ संकेत मिलने की संभावना है।
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क़मर वहीद नक़वी
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