गुरुवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी और अन्य मंत्रियों के साथ डिप्टी सीएम के पद पर मल्लू भट्टी विक्रममार्क ने भी शपथ ली है। वह तेलंगाना के पहले दलित डिप्टी सीएम हैं। खम्मम जिले के मधिरा विधानसभा क्षेत्र से चार बार के विधायक 63 वर्षीय भट्टी विक्रमार्क को राज्य में कांग्रेस में नई जान फूंकने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है।
उनके बारे में कहा जाता है कि वह ऐसे नेता हैं जिन्होंने सूझबूझ,अपनी मेहनत और जिद की बदौतल तेलंगाना में लगभग खत्म हो चुकी कांग्रेस को फिर से खड़ा कर दिया है। कभी बीआरएस ने कांग्रेस विधायकों को तोड़ कर उनसे नेता विपक्ष का पद भी छिन लिया था।
इसके बाद उन्होंने फिर से मेहनत की और नतीजा सामने है। राज्य में कांग्रेस की कामयाबी के पीछे मल्लू भट्टी विक्रममार्क की यात्राओं या 'पीपुल्स मार्च' को भी काफी श्रेय दिया जा रहा है। कांग्रेस विधायक दल के नेता भी वह रह चुके हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि कैसे तेलंगाना में कांग्रेस की जीत में मल्लू भट्टी विक्रममार्क का बड़ा योगदान रहा है। उनके राजनैतिक जीवन के उतार चढ़ाव के बारे में भी इस रिपोर्ट में बताया गया है।
इंडियन एक्सप्रेस की यह रिपोर्ट कहती है कि कांग्रेस नेताओं ने चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए पूर्व विधायक दल नेता मल्लू भट्टी विक्रममार्क के 'पीपुल्स मार्च' को श्रेय दिया है, जिन्होंने 36 निर्वाचन क्षेत्रों में 1,400 किलोमीटर की दूरी तय की थी।
तेलंगाना के नए डिप्टी सीएम और मनोनीत स्पीकर गद्दाम प्रसाद कुमार रेवंत रेड्डी कैबिनेट में दो माला चेहरे हैं, जबकि सी दामोदर राजनरसिम्हा एकमात्र मडिगा चेहरा हैं। माला और मडिगा दोनों अनुसूचित जाति (एससी) में से हैं, जो तेलंगाना की आबादी का लगभग 18% हिस्सा हैं।
पिछली विधानसभा के कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता विक्रमार्क इस चुनाव में पार्टी के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक रहे हैं।
विधानसभा चुनाव से कई महीने पहले और अपनी पार्टी के सहयोगियों की तुलना में बहुत पहले, विक्रमार्क ने अपना चुनाव अभियान शुरू कर दिया था। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से उत्साहित होकर इसे आगे बढ़ाते हुए उन्होंने मार्च और जून के बीच 1,400 किलोमीटर और 36 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करते हुए अपने स्वयं के राज्यव्यापी "पीपुल्स मार्च" की शुरुआत की थी।
अब अन्य कारकों के साथ ही उनकी इस पदयात्रा को राज्य में कांग्रेस के पुनरुत्थान के प्रमुख कारणों में से एक माना जा रहा है।
यहां तक पहुंचने की उनकी राह आसान नहीं थी
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि तेलंगाना का डिप्टी सीएम बनने की उनकी राह आसान नहीं थी। उनकी राजनैतिक यात्रा कई उतार-चढ़ाव वाली रही है। अविभाजित आंध्र प्रदेश में, भट्टी विक्रमार्क 1990 से 1992 तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) की कार्यकारी समिति के सदस्य थे, और 2007 में एमएलसी के रूप में चुने गए थे।
उन्होंने दो साल बाद मधिरा से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता था। वह 2014 तक आंध्र प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके हैं।
साल 2018 विक्रमार्क के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण साबित हुआ। हालांकि उन्होंने इस वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में अपनी सीट बरकरार रखी और कांग्रेस विधायक दल के नेता होने के कारण विपक्ष के नेता (एलओपी) बन गए।
इसके अगले वर्ष ही उनकी मुश्किलें तब बढ़ गई जब 19 कांग्रेस विधायकों में से 12 ने भारत राष्ट्र समिति या बीआरएस से हाथ मिला लिया। बीआरएस या तब के सीएम केसीआर ने उन्हें बड़ी राजनैतिक शिकस्त देते हुए उनसे नेता विपक्ष का पद छीन लिया।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए तेलंगाना में यह शर्मनाक स्थिति थी। जब हुजूरनगर विधायक एन उत्तम कुमार रेड्डी ने नलगोंडा से लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद इस्तीफा दे दिया, तो वह केवल पांच सदस्यीय कांग्रेस विधायक दल के नेता बनकर रह गए थे।
उनके लिए राह कठिन इसलिए भी थी कि उन्हें तेलंगाना कांग्रेस के भीतर उथल-पुथल से भी निपटना पड़ा, जहां प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच अंदरूनी कलह बड़े पैमाने पर थी।
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। राज्य के सबसे बड़े दलित नेताओं में से एक माने जाने वाले भट्टी विक्रमार्क अपनी पदयात्रा के जरिए फिर से सुर्खियों में आए। 2023 की गर्मियों में ही विक्रमार्क ने विधानसभा चुनाव के लिए में न केवल कांग्रेस के लिए माहौल तैयार किया, बल्कि खुद को राज्य में एक प्रमुख नेता के रूप में पेश करने में भी सफल रहे।
तब उन्होंने एक बातचीत में इंडियन एक्सप्रेस से कहा था कि दिन के समय बहुत गर्मी होती है लेकिन मुझे एक काम करना है और वह है जितना हो सके उतने लोगों से मिलना। हमने तेलंगाना को केसीआर-मुक्त बनाने की कसम खाई है और न तो तेज़ धूप या बारिश हमारे उत्साह को कम कर सकती है।
उन्होंने तेलंगाना में कांग्रेस कैडर को उत्साहित किया
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि 2019 में विधानसभा में विपक्ष के नेता का दर्जा खोने के बाद, मधिरा में विक्रमार्क का प्रभाव भी कम होने लगा क्योंकि बीआरएस के कमल राजू लिंगला ने बढ़त हासिल करना शुरू कर दिया था। तेलंगाना में भट्टी विक्रमार्क का कद तब बढ़ गया जब उनके कई सुझावों को कांग्रेस के घोषणापत्र में अपनाया गया। ये ऐसे सुझाव थे जिन्हें वह अपनी यात्रा के दौरान सार्वजनिक तौर पर कहा करते थे। उनके सुझावों को किसानों, युवाओं और अल्पसंख्यकों पर पार्टी के घोषणापत्र बनाने के लिए भी अपनाया गया।
कांग्रेस पार्टी के कई नेता बीआरएस सरकार की विफलताओं को उजागर करने और लोगों को कांग्रेस के चुनावी वादों से अवगत कराने के लिए उनकी यात्रा को श्रेय देते हैं।
अपनी यात्रा के क्रम में विक्रमार्क ने कई रैलियों और नुक्कड़ सभाओं को संबोधित किया। उन्होंने जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों से मुलाकात की। जिनमें आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक, दलित वर्ग, किसान, बेरोजगार युवा, सिंगरेनी में कोयला खनिक, छात्र, कारीगर और बुनकर शामिल थे।
उन्होंने मंचेरियल में श्रीपद येल्लमपल्ली परियोजना का भी दौरा किया और रामागुंडम, धर्मपुरी, हुजूराबाद, हुस्नाबाद और वरधानापेट निर्वाचन क्षेत्रों में बेमौसम बारिश के कारण क्षतिग्रस्त फसलों का मुद्दा उठाया।
इंडियन एक्सप्रेस की यह रिपोर्ट कहती है कि विक्रमार्क की यात्रा ने तेलंगाना में कांग्रेस कैडर को उत्साहित किया और पार्टी की चुनावी संभावनाओं को बढ़ाया। लोगों के साथ उनकी घनिष्ठ, व्यक्तिगत बातचीत की पार्टी के तेलंगाना प्रभारी माणिक राव ठाकरे सहित कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने प्रशंसा की थी, जिन्होंने कहा था कि यह राज्य में कांग्रेस की जीत का मार्ग प्रशस्त करेगा।
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