तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने कांग्रेस के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। केसीआर ने कांग्रेस के 18 में से 12 विधायकों को तोड़ लिया है। कांग्रेस के लिए इससे भी बड़े संकट और परेशानी की बात यह है कि इन 12 कांग्रेसी विधायकों ने कांग्रेस विधायक दल को तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस के विधायक दल में शामिल करवा दिया है। इसकी वजह से तेलंगाना विधानसभा में कांग्रेस का अस्तित्व ख़तरे में पड़ गया है। बात साफ़ है। 18 में से 12 विधायक एक हो गये हैं और इस वजह से ये विधायक कुल संख्या में दो-तिहाई हो गए। यानी, इन 12 विधायकों के पार्टी छोड़कर टीआरएस में आ जाने की वजह से इन पर एन्टी-डिफ़ेवशन लॉ मतलब दलबदल क़ानून लागू नहीं होगा, बल्कि इन्हीं 12 विधायकों का फ़ैसला मान्य हो गया है। इन 12 विधायकों के टीआरएस में शामिल हो जाने से 119 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के पास सिर्फ़ 6 विधायक बचे हैं और कांग्रेस से मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा तो छिन ही गया है साथ ही बचे हुए 6 विधायक भी तकनीकी तौर पर कांग्रेसी नहीं रहे, क्योंकि कांग्रेस विधायक दल ही टीआरएस में विलीन हो गया है। कांग्रेस से विपक्ष के नेता का पद भी छिन गया है। अब असदुद्दीन ओवैसी की मजलिस पार्टी 7 विधायकों के साथ मुख्य विपक्षी पार्टी बन गयी है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनावों, ज़िला पंचायत और मंडल पंचायत चुनावों में टीआरएस को शानदार जीत मिली थी। राज्य में 33 में से 32 ज़िला पंचायत पर टीआरएस का कब्ज़ा हो गया है। मंडल पंचायत चुनावों में भी 70 फ़ीसदी सीटें टीआरएस ने ही जीती हैं।
बता दें कि टीआरएस को लोकसभा चुनाव में भारी नुक़सान हुआ था। राज्य की 17 लोकसभा सीटों में से वह सिर्फ़ 9 जीत पायी थी। मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी कविता भी चुनाव हार गयी थीं। लोकसभा चुनाव में तेलंगाना से टीआरएस ने 9, बीजेपी ने 4, कांग्रेस ने 3 और एआईएमआईएम ने 1 सीट जीती थी, जबकि टीआरएस 16 सीटों पर जीत की उम्मीद लगाए बैठी थी। लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों में टीआरएस ने शानदार वापसी की।
निकाय चुनाव में जीत से उत्साहित केसीआर ने तेलंगाना को 'कांग्रेस मुक्त' करने के अपने अभियान में एक साथ 12 विधायकों को अपने पाले में खींच लिया। इन नेताओं में पूर्व गृह मंत्री सबिता इंद्रा रेड्डी, वनमा वेंकटेश्वर राव, वेंकट रमणा रेड्डी, सुधीर रेड्डी शामिल हैं।
ग़ौर करने वाली बात यह है कि पिछले साल दिसम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तेलुगु देशम पार्टी, सीपीआई और तेलंगाना जन समिति के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था। लेकिन चुनाव में महागठबंधन की क़रारी हार हुई थी। कांग्रेस को 119 में से केवल 19 सीटें ही मिली थी। टीआरएस ने 88 सीटें जीतकर शानदार जीत दर्ज की थी और दुबारा मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन लोकसभा चुनाव में टीआरएस शानदार प्रदर्शन नहीं कर पायी और कांग्रेस और बीजेपी ने उससे कुछ सीटें छीन लीं।
‘कांग्रेस मुक्त’ करने का केसीआर का अभियान!
जब से केसीआर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तभी से वे तेलंगाना को ‘कांग्रेस मुक्त’ करने में लग गए थे। कई कांग्रेसी विधायक लगातार उनके संपर्क में रहे। कुछ कांग्रेसी विधायकों ने खुलकर कह दिया था कि वे टीआरएस में शामिल होंगे, लेकिन दलबदल क़ानून के डर से वे ऐसा नहीं कर पाए थे। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी विधायक उत्तम कुमार रेड्डी नलगोंडा से जीतकर लोकसभा सदस्य बन गए। उन्हें विधायक पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। इसी के चलते कांग्रेसी विधायकों की संख्या 19 से कम होकर 18 हो गई और जब इन 18 में से 12 खुलकर टीआरएस में आ गए, वे दलबदल क़ानून के तहत कार्यवाई से बच गए। इन सभी 12 बाग़ी कांग्रेसी विधायकों ने मिलकर विधानसभा अध्यक्ष पोचारम श्रीनिवास रेड्डी से मिलकर कांग्रेस विधायक दल को ही टीआरएस विधायक दल में विलय करने की माँग कर डाली।स्पीकर ने इन 12 विधायकों की माँग को स्वीकार करते हए कांग्रेस विधायक दल को टीआरएस में विलय कर दिया। इससे कांग्रेस पर बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है।
चूँकि ज़्यादातर विधायक टीआरएस में जा चुके हैं और विधानसभा अध्यक्ष को चिट्ठी दे चुके हैं, कांग्रेस को तेलंगाना में अपना अस्तित्व साबित करने के लिए 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक का इंतज़ार करना पड़ेगा। राजनीतिक जोड़तोड़ में माहिर समझे जाने वाले और राजनीतिक दाँवपेच में महारत रखने वाले केसीआर ने तेलंगाना विधानसभा को न सिर्फ़ 'कांग्रेस मुक्त' किया है बल्कि विपक्ष को नाममात्र के बराबर कर दिया है।
अपनी राय बतायें