तमिलनाडु में 35 साल बाद ऐसा पहली बार होगा जब राजनीति की दो बड़ी शख़्सियतों की ग़ैरमौजूदगी में लोकसभा का चुनाव होगा। करुणानिधि और ‘अम्मा’ के नाम से मशहूर रहीं जयललिता की ग़ैरमौजूदगी में यह पहला बड़ा चुनाव है। इसलिए यह बड़ा सवाल है कि इन दो बड़े नेताओं की विरासत को कौन और कैसे आगे बढ़ाएगा?
करुणानिधि की विरासत स्टालिन के हाथ
जहाँ तक बात करुणानिधि की है, उन्होंने अपने जीते जी ही बेटे स्टालिन को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। करुणानिधि जब पिछली बार मुख्यमंत्री थे तब स्टालिन उपमुख्यमंत्री थे। करुणानिधि ने स्टालिन को डीएमके का कार्यकारी अध्यक्ष भी बना दिया था। करुणानिधि के बड़े बेटे अलगिरि ने स्टालिन का नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। लेकिन अलगिरी को दूसरे सभी पार्टी नेताओं ने दरकिनार कर दिया और स्टालिन को ही अपना नेता माना।
बात जयललिता की विरासत की करें, तो कई सवाल हैं। एआईएडीएमके में कोई ऐसा नेता नहीं दिखाई देता जो उनकी लोकप्रियता और करिश्मे के क़रीब भी पहुँचता हो। जयललिता अविवाहित थीं और उन्होंने अपने जीवनकाल में अपने राजनीतिक वारिस के बारे में कभी कोई घोषणा नहीं की। बीमार होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराए जाने पर उनके वफ़ादार पन्नीरसेल्वम को केयरटेकर मुख्यमंत्री बना दिया गया था।
शशिकला बनना चाहती थीं सीएम
ऐसा माना जा रहा था कि तबीयत ठीक होने के बाद जब जयललिता अस्तपाल से लौटेंगी तो वह फिर से सरकार की कमान संभाल लेंगी। लेकिन अस्पताल में ही उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के बाद पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद जयललिता की बेहद क़रीबी रहीं शशिकला ने पार्टी की कमान अपने हाथ में लेने और मुख्यमंत्री बनने की कोशिश शुरू कर दी। इसके लिए पन्नीरसेल्वम से इस्तीफ़ा दिलवाया गया।
इससे पहले कि शशिकला मुख्यमंत्री पद की शपथ ले पातीं, भ्रष्टाचार के एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने उन्हें दोषी क़रार दिया जिसकी वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा। चूँकि पार्टी के ज़्यादातर विधायक शशिकला के पक्ष में थे, इसलिए शशिकला ने अपने वफ़ादार पलानीसामी को मुख्यमंत्री बनवा दिया। पन्नीरसेल्वम ने पार्टी में अपना अलग गुट बना लिया।
शशिकला ने अपने भतीजे दिनाकरन के ज़रिए जेल से ही पार्टी और सरकार पर नियंत्रण रखने की कोशिश की। मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने का ख़तरा दिखने पर पलानीसामी ने पन्नीरसेल्वम से हाथ मिला लिया और दिनाकरन को पार्टी से ही बेदख़ल कर दिया।
मोदी, शाह ने करवाया समझौता
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी के बीच समझौता करवाया ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव में वे इन्हीं दोनों नेताओं के दम पर जयललिता के वोटबैंक को बिखरने और डीएमके के खाते में जाने से रोक सकें। सूत्रों की मानें तो बीजेपी लोकसभा चुनाव एआईएडीएमके के साथ मिलकर लड़ेगी।
बीजेपी-एआईएडीएमके मिल कर लड़ेंगे चुनाव
वैसे तो बीजेपी की पहली पसंद स्टालिन और उनकी डीएमके थी, लेकिन स्टालिन के कांग्रेस के साथ रहने के फ़ैसले से बीजेपी ने एआईएडीएमके के साथ मिलकर किस्मत आजमाने का फ़ैसला लिया है। सूत्रों के मुताबिक़, तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों में से एआईएडीएमके 20 पर अपने उम्मीदवार उतारेगी जबकि बीजेपी और दूसरे सहयोगी दल 19 सीटों पर लड़ेंगे। ऐसा माना जा रहा है कि इन 19 सीटों में से बीजेपी 8 सीटों पर लड़ेगी और 4 सीटें फ़िल्मस्टार 'कैप्टेन' विजयकांत की पार्टी डीएमडीके और 3 सीटें अंबुमणि रामदास की पार्टी पीएमके के खाते में जाएँगी। बची 4 सीटें दूसरे सहयोगी दलों को दी जाएँगी।
एआईएडीएमके में बग़ावत के आसार
केंद्र शाषित राज्य पुडुचेरी की सीट पर एआईएडीएमके का उम्मीदवार चुनाव मैदान में होगा। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की राय में अगर यही फ़ॉर्मूला अपनाया गया तो एआईएडीएमके में बग़ावत हो सकती है, क्योंकि लोकसभा में एआईएडीएमके के 37 सांसद हैं। ऐसे में अगर अब एआईएडीएमके, बीजेपी और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों से गठजोड़ करती है और बीजेपी के कहने के मुताबिक़ सीटों का बँटवारा होता है तो कम से कम 17 सांसदों का टिकट कटेगा।
एक ओर जहाँ बीजेपी जयललिता के वोटबैंक पर कब्ज़ा करना चाहती है, वहीं रजनीकांत और कमल हासन भी जयललिता के निधन से खाली हुई जगह को हासिल करना चाहते हैं।
रजनीकांत और कमल हासन दोनों मानते हैं कि जयललिता के चाहने वाले किसी भी सूरतेहाल में करुणानिधि के बेटे स्टालिन की तरफ़ नहीं जाएँगे। जयललिता के फ़ैंस को एक ऐसे नेता की ज़रूरत है जो जयललिता के जैसा ही लोकप्रिय हो और चुनाव में स्टालिन और उनकी पार्टी को हरा सकता हो। रजनी और कमल - दोनों, ख़ुद में जयललिता के राजनीतिक वारिस को देखते हैं।
दमदार खिलाड़ी हैं मैदान में
कुछ राजनेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि करुणानिधि और जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति बदल गयी है। अब राजनीति सिर्फ़ दो नेताओं के इर्द-गिर्द घूमने वाली नहीं रही। राजनीति का मैदान सभी के लिए खुला है और सालों बाद इस मैदान में वर्चस्व हासिल करने के लिए कई दमदार खिलाड़ी मैदान में हैं। इन खिलाड़ियों की कोशिश यही है कि वे करुणानिधि या फिर जयललिता जैसा स्थान राजनीति में बनाएँ।
ग़ौरतलब है कि अन्नादुरै की मृत्यु के बाद करुणानिधि डीएमके के अध्यक्ष बने थे और तब से लेकर 2018 में उनके निधन तक पार्टी की कमान उन्हीं के हाथों में थी। जयललिता 1982 में राजनीति में आयी थीं। सुपरस्टार एम. जी. रामचंद्रन (एमजीआर) ने जयललिता को राज्यसभा सदस्य भी बनाया था। एमजीआर के निधन के बाद जयललिता ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली थी। 1989 से लेकर, 2016 में जयललिता और 2018 में करुणानिधि के निधन तक तमिलनाडु की राजनीति इन्हीं दोनों दिग्गजों के आसपास घूमी है।
अम्मा के वोट बैंक पर नज़र
यह देखना दिलचस्प होगा कि करुणानिधि और जयललिता की जगह कौन लेगा। चर्चा यह भी है कि रजनीकांत एआईएडीएमके, बीजेपी, डीएमडीके, पीएमके वाले संभावित गठबंधन में शामिल होकर उसकी अगुवाई भी कर सकते हैं। लेकिन इसकी संभावना कम ही है। बहरहाल, सूत्रों के मुताबिक़, बीजेपी की कोशिश यही है कि जयललिता का वोट बैंक न बिखरे और उसका फ़ायदा बीजेपी को ही सबसे ज़्यादा हो।
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