मद्रास हाईकोर्ट ने पत्नी को गुजारा भत्ता दिए जाने से जुड़े एक मामला में महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि भले ही शादी वैध नहीं है, इसके बावजूद भी दूसरी पत्नी और उस दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चे सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मेंटेनेंस अर्थात गुजारा भत्ता पाने के हकदार हैं। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच के जस्टिस मुरली शंकर की एकल खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के मुताबिक पहले याचिकाकर्ता को प्रतिवादी की पत्नी और दूसरे याचिकाकर्ता को प्रतिवादी का बेटा माना जा सकता है और ये दोनों मेंटेनेस यानि गुजारा भत्ता पाने के हकदार हैं।
जस्टिस मुरली शंकर की एकल खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आए इस मामले में फैमिली कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार करने की मांग की गई थी। इस केस में फैमिली कोर्ट ने एक व्यक्ति को अपनी पत्नी और बेटे को 10 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने और एक महीने में गुजारा भत्ता की पूरी राशि देने के लिए कहा था।
इस केस में महिला का आरोप था कि कानूनी रुप से बाध्य होने के बावजूद उसने गुजारा भत्ता नहीं दिया। महिला ने आरोप लगाया था कि उस व्यक्ति ने दहेज के तौर पर 25 लाख रुपए मांगे थे। वह जब ये रुपए नहीं दे पायी तो उसका पति उससे दूर भागने लगा। महिला ने यह भी बताया कि उसके पति को हर माह 50 हजार रुपये बतौर वेतन मिलता है। साथ ही साथ उसके पति को 90 हजार रुपए से अधिक मासिक किराये के रूप में आय होती है।
याचिकाकर्ता का दावा, महिला से शादी नहीं हुई
इस केस में याचिकाकर्ता व्यक्ति की 2011 में एक दूसरी महिला से शादी हुई थी। उस शादी से उनका एक बच्चा भी है। कोर्ट को बताया गया कि पहली पत्नी से तलाक की याचिका दायर की गई थी लेकिन सुनवाई के बाद उसे खारिज कर दिया गया था, जिसके खिलाफ अपील की गई थी और वह अभी लंबित है। याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि उसका मासिक वेतन सिर्फ 11,500 रुपए है। वह वर्तमान में अपनी पहली पत्नी और उसके बच्चे को हर माह 7 हजार रुपए गुजारा भत्ता देता है।
इस केस में उसके और महिला के बीच शादी नहीं हुई थी। उसकी ओर से दावा किया गया कि महिला के साथ कोई रिश्ता नहीं था। इसलिए वह गुजारा भत्ता देने के लिए उत्तरदायी नहीं है।
दूसरी शादी को वैध नहीं माना जा सकता
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि उस व्यक्ति की पहली शादी अस्तित्व में है इसलिए दूसरी शादी हुई है यह साबित होने के बाद भी दूसरी शादी को वैध नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने माना कि यह दंपति पति-पत्नी की तरह एक साथ रह रहे थे और इस रिश्ते से उनका एक बेटा भी है। कोर्ट में याचिकाकर्ता व्यक्ति ने अपने मासिक आय के दावे के संबंध में अपनी सैलरी स्लीप नहीं पेश की, इसको देखते हुए कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा जिसमें कोर्ट ने 10 हजार रुपए हर महीने गुजारा भत्ते के रुप में देने को कहा था।
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