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फ़ोटो साभार: ट्विटर/@legalJourno

मद्रास बार: हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनर्जी का 'ट्रांसफर दंडात्मक लगता है'

मद्रास बार एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा है कि मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी को स्थानांतरित करने की सिफारिश 'दंडात्मक लगती है'। इसके साथ ही उसने सुप्रीम कोर्ट के कॉलिजियम से स्थानांतरण की उसकी सिफारिश पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। इसके अलावा दिल्ली स्थित कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स ने भी बयान जारी कर ऐसा ही आग्रह किया है। इसने अपने बयान में कहा है कि मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर जस्टिस बनर्जी का रिकॉर्ड अनुकरणीय रहा है। इसने अपने बयान में यह भी कहा है कि उन रिकॉर्डों और दस्तावेजों को रखा जाना चाहिए जिसके आधार पर बनर्जी का स्थानांतरण मेघालय हाई कोर्ट में किया गया है। 

कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स ने अपने बयान में यह भी कहा है कि जस्टिस बनर्जी को स्थानांतरण किए जाने वाले दस्तावेजों पर 16 सितंबर 2021 की तारीख़ दर्ज है, लेकिन इस आदेश को 9 नवंबर को सार्वजनिक किया गया। इसमें कहा गया है कि ऐसे दस्तावेजों को समय पर सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। 

मद्रास बार एसोसिएशन ने भी ऐसे ही सवाल उठाए हैं। इसने कहा है कि 9 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के कॉलिजियम ने सार्वजनिक किया कि उसने 16 सितंबर को हुई बैठक में न्यायमूर्ति बनर्जी के स्थानांतरण की सिफारिश की थी।

मद्रास बार एसोसिएशन ने रविवार को पारित किए गए प्रस्ताव में कहा है, 'एसोसिएशन माननीय श्री न्यायमूर्ति टीएस शिवगनम के मद्रास उच्च न्यायालय से कलकत्ता और माननीय मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी के मेघालय में स्थानांतरण को लेकर अपारदर्शिता से बेहद चिंतित है। लगता है कि ये तबादले स्थानांतरण के लिए मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर का उल्लंघन हैं। इस तरह के तबादलों को दंडात्मक माना जाता है और यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए अच्छा नहीं है।'

बता दें कि उसी बैठक में कॉलिजियम ने मद्रास उच्च न्यायालय के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिवगनम को कलकत्ता उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की भी सिफारिश की थी।

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'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने 11 अक्टूबर को न्यायमूर्ति शिवगनम के स्थानांतरण को अधिसूचित किया। इसके साथ ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस एमएन भंडारी को मद्रास हाई कोर्ट के लिए तबादला किया गया है। अब हालात ये हैं कि मुख्य न्यायाधीश बनर्जी के मेघालय उच्च न्यायालय में स्थानांतरण होते ही न्यायमूर्ति एमएन भंडारी मद्रास उच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश बन जाएंगे। परंपरा के अनुसार, उच्च न्यायालय में नियुक्ति होने तक वरिष्ठतम न्यायाधीश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हैं।

इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट के कम से कम 31 वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने एक पत्र लिखा है जिसमें सीजेआई एनवी रमना और कॉलिजियम से न्यायमूर्ति बनर्जी के स्थानांतरण पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया है।

उन्होंने पत्र में कहा है कि जस्टिस बनर्जी ने अपने पद पर एक वर्ष से भी कम समय बिताया है, और उन्होंने अपने पद पर रहते हुए ससम्मान अपनी क्षमताओं के अनुसार प्रशासनिक और न्यायिक दोनों कार्य बेहतरीन किए हैं।

पत्र में कहा गया है कि वह एक अच्छे न्यायिक प्रशासक रहे हैं, जिन्होंने कोविड -19 महामारी के दौरान भी हजारों मामलों का निपटारा किया। 

जस्टिस बनर्जी ने इस साल 4 जनवरी को मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला था। वह 1 नवंबर, 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

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पत्र के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि इस तरह के तबादले सार्वजनिक हित की रक्षा, इसे आगे बढ़ाने और न्याय के बेहतर प्रशासन के लिए ज़रूरी थे। वकीलों ने पत्र में कहा है कि हालांकि, वे यह जानने में असमर्थ हैं कि यह स्थानांतरण कैसे जनहित में या न्याय के बेहतर प्रशासन के लिए ज़रूरी है।

पत्र में कहा गया है, 'राज्य में अदालत के पदानुक्रम के शीर्ष पर इस तरह के अल्पकालिक कार्यकाल संस्था के स्वास्थ्य और न्याय प्रणाली के लिए खराब हैं।' पत्र में सुझाव दिया गया है कि मद्रास हाई कोर्ट जैसे बड़े हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश का कम से कम दो साल का कार्यकाल हो ताकि वे संस्थान के सुधार और विकास में सार्थक योगदान दे सकें।

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बता दें कि मुख्य न्यायाधीश बनर्जी के कुछ फ़ैसलों की तारीफ़ होती रही है। मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति बनर्जी ने सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस और डिजिटल मीडिया इथिक्स कोड) नियम, 2021 के प्रावधानों पर इस आधार पर रोक लगा दी थी कि यह मीडिया- प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक सिद्धांत को कम करेगा।

राज्य में चुनावों के दौरान पर्याप्त सावधानी नहीं बरतने के लिए महामारी की दूसरी लहर के दौरान न्यायमूर्ति बनर्जी ने चुनाव आयोग पर भी निशाना साधा था। उनके नेतृत्व में बेंच ने कहा था कि आयोग के अधिकारियों पर 'हत्या के लिए केस दर्ज किया जाना चाहिए'।

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