पिछले छह सालों में कई बड़े नेता कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह गए। कुछ अभी भी पार्टी में हैं, जो असंतुष्ट हैं और उनके बारे में अटकलें लगती रहती हैं कि वे भी देर-सवेर जा सकते हैं। नेतृत्व संकट को लेकर पार्टी में घमासान हो ही चुका है हालांकि हाथरस गैंगरेप और कृषि क़ानूनों के पुरजोर विरोध के बाद पार्टी को थोड़ी ऑक्सीजन मिलती दिखाई दे रही है। लेकिन नेताओं का पार्टी छोड़कर जाना जारी है, भले ही इसका कारण उनका सियासी स्वार्थ हो या कांग्रेस नेतृत्व की उन्हें रोक पाने में अक्षमता।
दक्षिण में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही बीजेपी कांग्रेस के एक बड़े चेहरे को तोड़ चुकी है। यह चेहरा है- दक्षिण की मशहूर अदाकारा और कांग्रेस में राष्ट्रीय प्रवक्ता जैसे बड़े पद पर रह चुकीं ख़ुशबू सुंदर का।
ख़ुशबू ने सोमवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे अपने इस्तीफ़े में उन्होंने कहा है कि पार्टी में शीर्ष स्तर पर कुछ ऐसे लोग बैठे हुए हैं, जिनका ज़मीन से कोई जुड़ाव नहीं है या जनता के बीच में स्वीकार्यता नहीं है। उन्होंने लिखा है कि ये लोग तानाशाही करते हैं और पार्टी के लिए गंभीरता से काम करने वाले उन जैसे लोगों को पीछे धकेलने की कोशिश करते हैं। ख़ुशबू ने 2014 में कांग्रेस का हाथ थामा था।
ख़ुशबू का पत्र सामने आते ही पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद से हटा दिया। ख़ुशबू कांग्रेस को अलविदा कहने वाली हैं, इसके संकेत दो महीने पहले तब भी मिले थे, जब उन्होंने केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति की खुलकर तारीफ की थी।
कहा जा रहा है कि ख़ुशबू 2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने से नाराज़ थीं और साथ ही पार्टी ने उन्हें किसी राज्य से राज्यसभा का भी उम्मीदवार नहीं बनाया, इस वजह से उन्होंने पार्टी छोड़ने का मन बना लिया था।
बीजेपी को फ़ायदा पहुंचाएंगी शशिकला?
तमिलनाडु में मई, 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में 8 महीने से भी कम का वक्त बचा है। तमिलनाडु में इन दिनों यह चर्चा ज़ोरों पर है कि शशिकला जल्द ही जेल से रिहा होंगी और फिर से राजनीति में सक्रिय होंगी। इस समय वह भ्रष्टाचार के एक मामले में सज़ा काट रही हैं।
शशिकला की जेल से रिहा होने की ख़बरों की वजह से तमिलनाडु की राजनीति गरमा गई है। वैसे, उनकी रिहाई फ़रवरी, 2021 में होनी है। अगर वह तय समय पर भी रिहा होंगी तो सवाल यह पूछा जा रहा है कि क्या एआईएडीएमके के नेता शशिकला को वापस पार्टी में शामिल करने के लिए तैयार होंगे?
जानकार कहते हैं कि मुख्यमंत्री पलानीसामी और उपमुख्यमंत्री पन्नीरसेलवम दोनों शशिकला की एआईएडीएमके में वापसी के सख़्त ख़िलाफ़ हैं। ऐसे में शशिकला एआईएडीएमके को तोड़ सकती हैं और समर्थकों संग अपने भतीजे टीटीवी दिनाकरन की पार्टी में शामिल हो सकती हैं। इससे दो दलों को सबसे ज़्यादा फ़ायदा होगा। पहला - डीएमके को और दूसरा बीजेपी को।
तमिलनाडु की राजनीति में यह भी चर्चा है कि बीजेपी और एआईएडीएमके अलग-अलग चुनाव लड़ सकते हैं। राज्य में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बेचैन बीजेपी वहां के बड़े चेहरों को पार्टी में शामिल करने की कोशिश कर रही थी और ख़ुशबू सुंदर के रूप में उसे सफलता मिल गई।
राह बेहद कठिन
दक्षिण के राज्यों की बात करें तो कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है, केरल में उसने अपने वोट बैंक में इज़ाफा किया है, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी को एनडीए में लाने के लिए वह पूरी ताकत लगा रही है, तेलंगाना में पिछले लोकसभा चुनाव में उसने 4 सीटें जीती थीं और वह वहां भी ख़ुद को मजबूत करने में जुटी है। तमिलनाडु ही एक ऐसा राज्य है, जहां लोकसभा चुनाव में एआईएडीएमके से गठबंधन करने के बाद भी उसे सफलता हासिल नहीं हुई थी।
इस बार जीत हासिल करने के इरादे से ही बीजेपी वहां सक्रियता बढ़ा रही है। शशिकला अगर एआईएडीएमके में विभाजन करा देती हैं तो बीजेपी पन्नीरसेल्वम गुट के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतर सकती है। देखना होगा कि ख़ुशबू सुंदर के आने से क्या बीजेपी को राज्य की राजनीति में कोई फ़ायदा होगा?
प्रधानमंत्री मोदी जब-जब तमिलनाडु जाते हैं तो देश भर में ‘गो बैक मोदी’ ट्रेंड करने लगता है। इससे पता चलता है कि राज्य में बीजेपी का विरोध ज़्यादा है और तमिलनाडु के पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम इसकी तसदीक करते हैं।
कांग्रेस कब संभलेगी?
कांग्रेस में नेतृत्व संकट के मसले पर जमकर घमासान हो चुका है। इसके बाद आलाकमान ने चिट्ठी लिखने वाले नेताओं पर कार्रवाई कर संकेत दिया था कि वह बग़ावत को बर्दाश्त नहीं करेगा। लेकिन नेतृत्व संकट कब तक सुलझेगा, राहुल गांधी कब गद्दी संभालेंगे या पार्टी में अध्यक्ष का चुनाव कब होगा, इन मुद्दों पर पार्टी पूरी तरह मौन है।
चिट्ठी लिखने वाले नेता अपने साथियों पर हुई कार्रवाई से नाराज हैं और ऐसे में ग़ुस्सा अंदर ही अंदर भड़क रहा है। पिछले छह साल में पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से लेकर, चौधरी बीरेंद्र सिंह, अशोक तंवर, रीता बहुगुणा जोशी, ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। अब ख़ुशबू सुंदर जा रही हैं तो देखना होगा कि आख़िर यह सिलसिला कहां जाकर रूकेगा।
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