डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन ने 29 सितंबर को कहा कि कर्नाटक सरकार को पानी रोकने के लिए उकसाने में कर्नाटक के भाजपा नेताओं की संलिप्तता है। उन्होंने कहा कि वहां की सरकार का पानी रोकने का फैसला 'स्थानीय राजनीति' से प्रेरित है। उन्होंने कहा कि भाजपा कर्नाटक में हो रहे प्रदर्शनों के पीछे है। वो प्रदर्शनकारियों को भड़का भी रही है।
डीएमके नेता ने जोर देकर कहा, "कावेरी कर्नाटक की संपत्ति नहीं है जिस पर भाजपा नेता दावा कर रहे हैं। कोई भी नदी किसी एक राज्य की नहीं होती। कावेरी का पानी, जहां भी बहता है, हर राज्य और विशेष रूप से निचले तटीय राज्यों में वितरित किया जाना चाहिए। कर्नाटक में हड़ताल पूरी तरह से राजनीतिक है।"
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एएनआई के मुताबिक, एलंगोवन ने एक दिन पहले 28 सितंबर को कहा था, "कोई भी नदी का एक राज्य मालिक नहीं हो सकता है, कावेरी को चार राज्यों के बीच साझा किया जाना चाहिए क्योंकि यह चार राज्यों में बहती है...जब भारी बारिश होती है, एक फॉर्मूला है, और जब कम वर्षा होती है, तब भी एक फॉर्मूला है। इसलिए हम (तमिलनाडु) उस फॉर्मूले के अनुसार पानी छोड़ने के लिए कह रहे हैं। हम पानी की पूरी मात्रा की मांग नहीं कर रहे हैं।"
डीएमके राज्यसभा सांसद तिरुचि शिवा का कहना है कि इस मामले में केंद्र सरकार दखल दे। हम केवल तमिलनाडु के किसानों के लिए पानी चाहते हैं, किसी अन्य राज्य के साथ कोई विवाद नहीं।"
कावेरी जल विवाद कर्नाटक में किसान संगठनों के विरोध प्रदर्शन से और बिगड़ गया है। किसान और कन्नड़ संगठन इस साल कावेरी बेसिन में अपर्याप्त बारिश का हवाला देते हुए तमिलनाडु को पानी छोड़ने का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमारे जलाशयों में पानी कम हो गया है। कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) ने कर्नाटक को 13 सितंबर से 15 दिनों के लिए तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया था। कर्नाटक की चुनौती के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सीडब्ल्यूएमए के फैसले को बरकरार रखा है। अब कर्नाटक सुप्रीम कोर्ट का निर्देश मानने को बाध्य है। कायदे से इसमें केंद्र को दखल देकर मामले को सुलझाना चाहिए लेकिन केंद्र की ओर से कोई बयान अभी तक नहीं आया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया था कि वह ट्रिब्यूनल के फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, और तमिलनाडु को कावेरी से पानी का उचित हिस्सा मिलना चाहिए।
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