भारत में मरने के बाद उस नेता की आलोचना नहीं की जाती। सोचिए अगर हिटलर या मुसोलिनी भारत में मरे होते तो क्या होता। लेकिन हमारे संवाद का मुद्दा हिटलर या मुसोलिनी नहीं है। हमारा संवाद फ़ासिस्ट हुकूमत को चलाने में मुख्य भूमिका निभाने वाली शख्सियतों पर है।आखिर उनकी मृत्यु पर किस रूप में शोक मनाया जाए? इसी सवाल को टटोल रहे हैं स्तंभकार और जाने-माने चिंतक अपूर्वानंद। जरूर पढ़िए और मुद्दों को परखिएः