क्या कोई सरकार ऐसा बजट ला सकती है, जो देश के हर नागरिक को ये पाँच चीजें मुहय्या करवा दे? यह कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है। शिक्षा और चिकित्सा तो बिल्कुल मुफ़्त कर दी जाए।
जो किसान आंदोलन 25 जनवरी तक भारतीय लोकतंत्र की शान बढ़ा रहा था, वही अब दुख और शर्म का कारण बन गया है। इस आंदोलन ने हमारे राजनीतिक नेताओं के बौद्धिक और नैतिक दिवालिएपन को उजागर कर दिया है।
अमेरिका का बाइडन प्रशासन डोनाल्ड ट्रंप की अफ़ग़ान-नीति पर अब पुनर्विचार करनेवाला है। वैसे तो ट्रंप प्रशासन ने पिछले साल फ़रवरी में तालिबान के साथ जो समझौता किया था, पर इसका सफल होना कठिन है।
वाट्सऐप को दुनिया के करोड़ों लोग रोज इस्तेमाल करते हैं। वह भी मुफ्त! लेकिन पिछले दिनों लाखों लोगों ने उसकी बजाय ‘सिग्नल’, ‘टेलीग्राम’ और ‘बोटिम’ जैसे माध्यमों की शरण ले ली।
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली की यह दिल्ली-यात्रा हुई तो इसलिए है कि दोनों राष्ट्रों के संयुक्त आयोग की सालाना बैठक होनी थी लेकिन यह यात्रा बहुत सामयिक और सार्थक रही है।
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी संसद पर जो नौटंकी रचाई थी, उसका अंत तो हो चुका है और उन्होंने यह भी मान लिया है कि 20 जनवरी को डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जो बाइडन और कमला देवी हैरिस राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति की शपथ ले सकेंगे।
कोरोना से जैसा युद्ध भारत करेगा, वैसा कोई और देश करने की स्थिति में नहीं है। 30 करोड़ लोगों को फ़िलहाल टीका लगाने की तैयारी है। इतने लोग तो बस दो-तीन देशों में ही हैं। धीरे-धीरे भारत में 140 करोड़ लोगों को भी कोरोना का टीका मिल सकेगा।
ग़ाज़ियाबाद के मुरादनगर श्मशान घाट में छत गिरने से 25 लोगों से ज़्यादा की मौत हो गई और लगभग सौ लोग बुरी तरह से घायल हो गए। यह छत कोई 100-150 साल पुरानी नहीं थी।
जिन्ना के देश पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वाह प्रांत में एक कृष्ण मंदिर को भीड़ ने ढहा दिया। उस भीड़ को भड़काया मौलाना मोहम्मद शरीफ ने, जिसका कहना था कि किसी मुसलिम देश में मंदिरों को ढहाना तो पुण्य-कर्म है।
सरकार और किसान नेताओं के बीच अब जो बातचीत होने वाली है, मुझे लगता है कि यह आख़िरी बातचीत होगी। या तो सारा मामला हल हो जाएगा या फिर यह दोनों तरफ़ से तूल पकड़ेगा।
भारत के चार ख़ास प्रधानमंत्री किसी जाति, संप्रदाय, मज़हब, भाषा या वर्ग-विशेष के प्रतिनिधि नहीं थे। वे संपूर्ण भारत के प्रतिनिधि थे। वे प्रधानमंत्री थे, प्रचारमंत्री नहीं थे। वे प्रधानसेवक थे, प्रधानमालिक नहीं थे। वे सर्वसमावेशी थे, वे सर्वज्ञ नहीं थे।
कांग्रेस के नेता श्री मोतीलाल वोरा का 20 दिसंबर को 93वाँ जन्म दिन था और 21 दिसंबर को उनका निधन हो गया। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नहीं बने थे फिर भी लगभग सभी राजनीतिक दलों ने उनके महाप्रयाण पर शोक व्यक्त किया।