हिन्दी के अखबार अब खबरों, सूचनाओं के लिए नहीं बल्कि विज्ञापनों के लिए छापे जा रहे हैं और पाठक उसे पढ़ रहे हैं। विज्ञापनों की लालच ने हिन्दी अखबारों के संपादकों को बौना बना दिया है। बहुत अजीबोगरीब हालात हैं। आखिर पाठक कब समझदार होंगे।
क़ानून-व्यवस्था दुरुस्त रखने के दावे कर रही सरकारें दुष्कर्म के अपराध क्यों नहीं रोक पा रही हैं? क्या दुष्कर्मियों को सज़ा मिल रही है? यदि सबकुछ ठीक है तो महिला सुरक्षा के मामले में देश फिसड्डी क्यों है?
देश के प्रधानमंत्री की जो ज़िम्मेदारियाँ हैं और जो वादे वे करते आए हैं क्या वह उन्हें पूरा कर पाए हैं? अब वह डीजल-पेट्रोल के लिए राज्यों पर ज़िम्मेदारी क्यों डाल रहे हैं?
देश को विकास पथ पर लाने के लिए नरसिंहानंदों को नहीं सिंचित क्षेत्रों को दोगुना और तिगुना करना होता है। लेकिन क्या ऐसा हुआ? क्या ऐसी बढ़ोतरी नफ़रती भाषणों में नहीं हुई है?
देश के दो बड़े राज्यों- उत्तर प्रदेश और बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था क्यों चरमराई है? जिस बिहार में नीतीश कुमार 16 साल से मुख्यमंत्री हैं वहाँ अस्पताल इतनी ख़राब हालत में क्यों हैं?
उत्तर प्रदेश की क़रीब 20 करोड़ की आबादी में से 15 करोड़ लोगों को ग़रीबों वाला राशन मिलता है तो इसी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने शाही अंदाज में शपथ ग्रहण समारोह पर पैसा क्यों बहाया?
महात्मा गांधी ने हमेशा हिंदू-मुसलिम एकता की वकालत की। इसी वजह से उनको अपनी जान गँवानी पड़ी। लेकिन गांधी के सपने को क्या सांप्रदायिक नफ़रत से तोड़ने की कोशिश की जा रही है? द कश्मीर फाइल्स फिल्म को कैसे देखा जाएगा?
पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आए तो पता चला कि तमाम गंभीर मुद्दे गौण हो गए और जनता ने भावनाओं में बहकर मतदान किया। लेकिन क्या इससे वो मुद्दे खत्म हो गए। जानिए ये सब क्यों हुआ।
देश में संस्थाएँ क्या अपना ठीक से काम कर रही हैं? क्या रोजगार पर या विदेश मामले में स्पष्ट नीति है? चुनाव आयोग से लेकर क़ानून लागू करने वाली एजेंसियाँ तक अपना दायित्व निभा रही हैं?
ग्रीक दार्शनिक अरस्तू ने कहा था कि “एक व्यक्ति का शासन होने से अच्छा है कि कानून का शासन हो, क्योंकि ऐसा होने से कानून के संरक्षक को भी कानून का पालन करना पड़ता है”।
भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में संसद में इतिहास के जरिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर जो टिप्पणियां कीं, उसी बहस को इस लेख में आगे बढ़ाया गया है।
विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जब संसद में सरकार के मंसूबे पर सवाल उठा रहे थे तो सत्ता पक्ष की तीखी प्रतिक्रिया क्या दिखाती है? राहुल ने जो सवाल उठाए क्या वे सरकार को परेशान करने वाले नहीं हैं?