आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने क्यों कहा कि ‘‘जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पंथ आधारित जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती’’? क्या उनका इशारा मुसलिम नहीं थे?
देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया है तो फिर सरकारी संस्थाओं में धार्मिक आधार पर भेदभाव क्यों? क्या संवैधानिक कृत्यों का निर्वहन धार्मिक दरवाजों से किया जा सकता है?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच पर टीवी एंकरों और सरकार को तमाम नसीहतें दी हैं। कोर्ट ने टीवी एंकरों से कहा कि वो अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। उसने सरकार से कहा कि वो हेट स्पीच पर मूक दर्शक बनी हुई है। वंदना मिश्रा ने यही सवाल किया है कि क्या सरकार अब हेट स्पीच वालों पर एक्शन का साहस दिखा पाएगी। पढ़िए, यह लेख।
देश में निर्भया, हाथरस जैसी बलात्कार की जघन्य वारदात हुई हैं और अब लखीमपुर का मामला एक ताजा उदाहरण है। लेकिन तमाम बड़े नेता इन मामलों पर चुप क्यों हैं, बोलते क्यों नहीं।
जिस राजपथ पर कोई भी अधिकार की बात कर सकता था, जहां किसानों, मजदूरों और छात्रों ने कई बार विरोध के अपने अधिकार को पुष्ट किया, उसका नाम बदलकर ‘कर्तव्य’ पथ क्यों किया गया? जानिए इसके क्या मायने हैं।
'कांग्रेस मुक्त भारत’ के माध्यम से बीजेपी क्या संदेश देना चाहती है? हर मुद्दे पर आख़िर बीजेपी या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी को निशाने पर क्यों लेते हैं?
क्या ऐसी स्थिति की कल्पना की जा सकती है जिसमें तापमान अगले कुछ दशकों में औसत रूप से क़रीब 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाए? आख़िर भारत में पर्यावरण नुक़सान से बचने के लिए क्या किया जा रहा है? पर्यावरण सूचकांक में भारत फिसड्डी क्यों है?
बिलकीस बानो बलात्कार मामले में क्या न्याय हुआ? रफीक बनाम यूपी राज्य के मामले में जस्टिस अय्यर ने कहा था कि एक हत्यारा शरीर को मारता है जबकि एक बलात्कारी आत्मा को मारता है। इसके लिए क्षमा कैसी?
डॉ. बीआर आंबेडकर कहा करते थे कि सवाल करना मानव जाति की सबसे बड़ी संपत्ति है और जो समाज सवाल करना बंद कर देता है वह बर्बरता में वापस जाने के लिए बाध्य हो जाता है। जानिए कि घर-घर तिरंगा पर वंदिता मिश्रा के क्या सवाल हैं।
मोदी सरकार हाल ही महंगाई, ईडी की मनमानी के मुद्दे पर कांग्रेस के आंदोलन से डर गई। मात्र इस आंदोलन से डरने वाली सरकार कितनी मजबूत निकली, वो सामने आ गया। इसी से पता चलता है कि भारत में कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में आने पर मनमानी तो कर सकता है लेकिन वो इस मजबूत लोकतंत्र को विलुप्त नहीं कर सकता।
देश का नेतृत्व कैसा होना चाहिए? महंगाई, बेरोजगारी, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों को सुलझाए या फिर चुनाव में वादे को भूल जाए? नेतृत्व का आकलन क्या उसके वादों को पूरा करने के आधार पर नहीं होना चाहिए?
क्या पहली आदिवासी राष्ट्रपति होना ही ऐतिहासिक है या मिसाल पेश किए जाने वाले काम ऐतिहासिक होंगे? क्या आदिवासियों का उद्धार होगा, उनकी आजीविका पर आ रहे संकट का समाधान होगा?
देश में महिलाओं की स्थिति पुरुषों के मुक़ाबले कैसी है? क्या महिलाओं के सशक्तिकरण के दिशा में सरकार के स्तर पर पर्याप्त प्रयास किए गए हैं? यदि ऐसा है तो हालात सुधरते दिख क्यों नहीं रहे हैं?
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 में संशोधन क्यों किया जा रहा है? नियमों का उल्लंघन करने वालों को जेल की सजा क्यों हटाई जा रही है? क्या जुर्माने की राशि बढ़ाने से कुछ हासिल होगा?
लोकतंत्र के लिए सबसे ज़रूरी क्या है? क्या सत्ता को बेलगाम छोड़ा जा सकता है और आलोचनाओं पर पाबंदी लगाई जा सकती है? जानिए, सीजेआई एनवी रमना क्या कहते हैं।