गुजरात मॉडल और पीएम मोदी की सफलता की कहानियां ध्वस्त हो चुकी हैं। अब जनता को तय करना है कि वो तीसरी बार उन्हें मौका देगी या नहीं। किसी एक ही व्यक्ति को पीएम पद के लिए फिर से (तीसरी बार) चुनना भारत के नागरिकों की बाध्यता तो नहीं है? आखिर किसे पीएम चुनना चाहिए? पढ़िए वंदिता मिश्रा का विचारोत्तेजक लेखः
पुरुषों में तमाम ऐसे लोग हैं जो चाहे जितनी उच्च शिक्षा हासिल कर लें लेकिन अंततः महिला उनके लिए बस देह ही रहती है। वाराणसी में आईआईटी-बीएचयू कैंपस में हो रही घटनाएं, यही बता रही हैं। उस पर इस निर्वाचन क्षेत्र के सांसद और देश के प्रधानमंत्री की चुप्पी और भी खलने वाली है। महिला पहलवानों से लेकर मणिपुर में महिला विरोधी अपराध पर चुप रहने वाले पीएम मोदी वाराणसी की घटनाओं पर भी चुप्पी साध गए। अगर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने यह मामला नहीं उठाया होता तो किसी का ध्यान भी नहीं जाता। महिला विरोधी अपराधों पर इस बार स्तंभकार वंदिता मिश्रा का लेखः
राम मंदिर का उद्घाटन किसे करना चाहिए? देश की चार प्रमुख पीठों के सभी शंकरचार्यों से बेहतर कौन व्यक्ति हो सकता है जो भारत में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधि होता? पीएम मोदी के उद्घाटन करने के मायने क्या हैं?
वैश्विक भुखमरी सूचकांक(GHI) ऐसा ही एक सच है जो नरेंद्र मोदी सरकार के सामने आकर खड़ा हो गया है। जिसका निदान गौरीकुंड में शंख बजाने से नहीं होगा, जिसका समाधान आदि शंकराचार्य को निहारने से नहीं होगा। कुपोषण और भुखमरी भारत जैसे महान देश की तल्ख सच्चाई है। केंद्र सरकार आंकड़ों से मुंह चुराने की बजाय इसका सामना करे। स्तंभकार वंदिता मिश्रा इस अत्यंत गंभीर लेख में कुछ कहना चाहती हैंः
आज़ाद मीडिया पर जिस तरह कार्रवाई की जा रही है, क्या वह देश के लिए ख़तरा है? क्या यह किसी राष्ट्र को किसी बड़े खतरे में पड़ने से रोकने वाली एक अहम कड़ी नहीं होती है?
भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी की कारगुजारी के बाद भारतीय संसद की गरिमा को लेकर तमाम सवाल खड़े हो गए हैं। ऐसे में सिर्फ और सिर्फ स्पीकर ही भारतीय संसद की गरिमा बचा सकते हैं। ऐसा न हुआ तो इतिहास में आने वाली पीढ़ियां पढ़ेंगी कि कैसे देश की संसद की मर्यादा को देश के ही सत्तारूढ़ दल ने तार-तार कर दिया।
आज के भारत की वैश्विक पहचान भारतीय होने में है न कि सनातनी या अन्य कोई धर्मसूचक शब्द से! सबसे अहम बात तो यह है कि धर्म की ढाल लोकतान्त्रिक गणराज्य के प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देती। स्तंभकार वंदिता मिश्रा को पढ़िएः
बिना एजेंडा बताए, संसद का विशेष सत्र बुला लिया गया है। लेकिन ऐसा नामुमकिन है कि सरकार ने बिना सोचे समझे विशेष सत्र बुला लिया हो। हो सकता है कि सरकार ने कुछ ऐसा सोचा हो, जिसे वो बताना न चाहती हो लेकिन अगर विपक्ष सवाल न करे तो क्या करे। विपक्ष को लगातार सवाल पूछना चाहिए, जिसे वो कर भी रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार 15 अगस्त पर लाल किले से जो भाषण दिया, तमाम बुद्धिजीवी अभी भी अपने हिसाब से उसकी व्याख्या कर रहे हैं। स्तंभकार वंदिता मिश्रा का नजरिया भी पढ़िएः
संसद में प्रधानमंत्री के भाषण के बाद मणिपुर को लेकर देश में निराशा का माहौल बरकरार है। स्तंभकार वंदिता मिश्रा का कहना है कि कॉंग्रेस का भूत और प्रधानमंत्री के अपने व्यक्तिगत सपनों का भविष्य उनका पीछा छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
अब जबकि ट्विटर का लोगो बदल चुका है। इसने ‘ब्लू बर्ड’ की जगह ‘X’ को अपना नया लोगो चुना है। पूरा का पूरा ट्विटर प्लेटफॉर्म आने वाले समय में X.com में परिवर्तित होने वाला है। ऐसे में यह जांच जरूरी है कि ट्विटर ने सिर्फ लोगो ही बदला है या पूरा ट्विटर ही बदल गया है।
मणिपुर वीडियो के जरिए जो भयावह सच सामने आया, उस पर पूरी मानवता शर्मसार है। लेकिन कुछ लोगों को तो शर्म भी नहीं आ रही। पीएम मोदी ने बहुत दुख जताया लेकिन मणिपुर के लोगों से शांति की अपील नहीं की। वो पिछले दो महीने से मणिपुर पर चुप थे। पत्रकार और स्तंभकार वंदिता मिश्रा कह रही हैं - प्रधानमंत्री और सरकार की उपस्थिति तो पहले से ही संदिग्ध है। पढ़िए उनका यह लेख।
देश में माफी का माहौल तैयार हो रहा है। लेकिन जिस तंत्र को अपने कपट और अहंकार के लिए माफी मांगनी चाहिए, वो नहीं मांग रहा। फिर भी न्याय के घोषित पुरोहित संतुष्ट हैं। न्याय को तोड़ा मरोड़ा जा रहा है। गरीबों को स्वाभिमान की गारंटी तो मिल रही है लेकिन इस देश में न्याय की गारंटी देने वाला कोई नहीं। आज स्तंभकार वंदिता मिश्रा को पढ़िएः
उभरते हुए दलित नेता चंद्रशेखर आजाद पर हमले का मकसद अभी साफ नहीं है, यह बात यूपी के डीजीपी (कानून व्यवस्था) ने कही है। लेकिन चंद्रशेखर एक उभरते हुए दलित नेता हैं। इसलिए तमाम आशंकाएं भी हैं। अपने साप्ताहिक कालम में पत्रकार वंदिता मिश्रा का सीधा सवाल है कि कहीं ये दलित राजनीति को खत्म करने की कोशिश तो नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका दौरा अभी-अभी खत्म हुआ है। स्तंभकार वंदिता मिश्रा बता रही हैं कि पीएम मोदी विदेशी धरती पर योग पर भाषण झाड़ते रहे। मणिपुर की जातीय हिंसा में जलते लोगों के लिए उनके पास कोई संदेश नहीं था।