उत्तराखंड ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपना कदम आगे बढ़ाया है। उसने एक ड्राफ्ट कमेटी का गठन किया है। हालांकि यूसीसी के मुद्दे पर बीजेपी चुप है, जबकि 2019 के आम चुनाव में उसका यह वादा था।
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा विरोध करने की बजाय इसके ड्राफ्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है, ताकि मुसलमान इस पर चर्चा कर सकें और सलाह दे सकें। शिया बोर्ड की यह मांग अन्य मुस्लिम संगठनों से अलग हटकर है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर असम के सीएम के बयान पर सीपीएम नेता ने उन्हें बुरी तरह फटकारा है। उन्होंने कहा कि आरएसएस-बीजेपी इसकी आड़ में जानबूझकर मुसलमानों को टारगेट कर रहे हैं। इसीलिए उनके नेता आए दिन इस मुद्दे पर फर्जी बयान देते हैं।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता किस मक़सद से लागू करने की बात की जा रही है? क्या कोई राज्य अपने दम पर ऐसा कर सकता है? अगर ये कानून लागू हो जाता है तो हिंदुओं को उससे क्या हासिल होगा? क्या इससे उन्हें कोई नुक़सान भी हो सकता है?
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार इस बारे में विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाएगी जो इस क़ानून को बनाने से जुड़ा ड्राफ्ट बनाएगी। बीजेपी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समान नागरिक संहिता की वकालत करते रहे हैं।
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ईशनिंदा क़ानून यानी एंटी ब्लासफ़ेमी लॉ की माँग क्यों की है, क्या वह भारत में इसलाम पर हो रहे कथित हमलों से परेशान है?
भारत में समान नागरिक संहिता की पैरवी आज़ादी के समय से की जा रही है, लेकिन अब तक समान नागरिक संहिता को लागू नहीं किया जा सका। अगर तमाम राज्य सरकारें और केंद्र सरकार इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ती हैं तो क्या वह इससे पहले मुसलिमों का भरोसा जीत पाएगी?
जब हिंदुओं के लिए ही एक सिविल कोड नहीं बन पाया है तो सभी समुदायों के लिए यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड की बात क्यों? आज़ादी की लड़ने वाले नेता भी इससे सहमत नहीं थे तो आरएसएस और बीजेपी क्यों करते रहे हैं इसकी माँग? देखिए शैलेश की रिपोर्ट में इनका जवाब।
एनडीए के घटक दलों ने समान नागरिक संहिता बनाने की माँग शुरू कर दी है। बीजेपी ख़ुद अर्से से इसकी माँग करती रही है। तो क्या अब समान नागरिक संहिता की बारी है?