देश के आर्थिक स्वास्थ्य की स्थिति बताने वाले हर इंडिकेटर्स नीचे की ओर जा रहे हैं। बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर है। लोगों के पास ख़रीदने की क्षमता कम हो गई है। ऐसे में अर्थव्यवस्था कैसे संभलेगी? सत्य हिंदी के लिए देखिए आशुतोष की बात।
स्टेट बैंक ने फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज घटा दिया है। वित्त मंत्रालय ने श्रम मंत्रालय से कहा है कि वह पीएफ़ पर ब्याज घटाए। राहुल बजाज का कहना है कि बाजार में ग्राहक नहीं हैं। देखिए 'शीतल के सवाल' में अर्थव्यवस्था की ऐसी हालत क्यों।
बेरोज़गारी बढ़ने से शहरों की तरफ़ पलायन और तेज़ी से बढ़ने वाला है। यानी हमारे जो शहर हैं वे और तेज़ी से बद से बदतर हालात की तरफ़ बढ़ने वाले हैं। तो क्या सिर्फ़ स्मार्ट सिटी से समाधान हो पाएगा?
आख़िरी दो चरणों में उत्तर प्रदेश के जिन क्षेत्रों में चुनाव होने जा रहे हैं वे औद्योगिक रूप से पिछड़े हुए हैं। गोरखपुर में अब हथकरघा, खादी, शहद उत्पादन, चमड़े का कारोबार कहीं नज़र नहीं आता है। क्या ये चुनावी मुद्दे बनेंगे?
लोकसभा चुनाव के बीच ही मोदी सरकार के लिए बेरोज़गारी के मामले में एक और बुरी ख़बर आयी है। सीएमआईई की रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल के पहले तीन हफ़्ते में बेरोज़गारी दर औसत रूप में 8.1 फ़ीसदी पहुँच गयी है।
एक नयी रिपोर्ट के अनुसार, ख़ासकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 50 लाख लोगों ने नोटबंदी के बाद अपना रोज़गार खो दिया है। इस मुद्दे पर देखिये वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का विश्लेषण।
अगर अर्थव्यवस्था और बेरोज़गारी के मसले पर वोट डाले गये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। हो सकता है कि वह दुबारा प्रधानमंत्री न बनें।
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ नोटबंदी के बाद क़रीब 88 लाख करदाताओं ने टैक्स रिटर्न नहीं भरा है। ऐसे में सवाल उठता है कि इतने करदाताओं ने रिर्टन क्यों नहीं भरा? क्या इन लोगों की आमदनी कम हो गयी या नौकरी चली गयी?
गाँवों में किसानी और रोज़गार की हालत कितनी ख़राब है, यह मनरेगा के आँकड़े साफ़ बयान कर रहे हैं। पिछले साल के मुक़ाबले इस साल मनरेगा में काम माँगने में रिकॉर्ड दस फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
सरकार के कामकाज पर अंगुली उठाने वाले आर्थिक आँकड़ों से छेड़छाड़ और इन संस्थानों की स्वायत्तता पर हो रहे हमलों पर देश के बड़े अर्थशास्त्रियों ने जताई चिंता।