मुंबई पुलिस ने टीआरपी स्कैम में कथित तौर पर अर्णब गोस्वामी का हाथ होने का पहली बार सबूत होने का दावा किया है। पुलिस ने अदालत में सोमवार को रिमांड रिपोर्ट पेश की है।
Satya Hindi News Bulletin। सत्य हिंदी समाचार बुलेटिन। अर्णब की बढ़ेंगी मुश्किलें, महाराष्ट्र के दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित।किसान संगठनों का दावा - आंदोलन में 20 किसानों की मौत
टीआरपी स्कैम के मामले में रिपब्लिक टीवी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विकास खानचंदानी को मुंबई पुलिस ने गिरफ़्तार किया है। यह इस मामले में 13वीं गिरफ़्तारी है।
Satya Hindi News Bulletin। सत्य हिंदी समाचार बुलेटिन। TRP घोटाला: रिपब्लिक मीडिया के मालिकान को बनाया वांटेड ।कांग्रेस नेता अहमद पटेल का निधन, मोदी-राहुल ने जताया शोक
आपने अकसर चैनल मालिकों और संपादकों को यह कहते हुए सुना होगा कि रिमोट तो दर्शकों के हाथ में है, पसंद उनकी है, वे चाहें तो कोई चैनल देखें या न देखें। लेकिन क्या यह इतनी सीधी सी बात है? क्या यह सचमुच में दर्शकों के हाथ में है?
ऊपर से देखने से लगता है कि टीआरपी के खेल ने न्यूज़ चैनलों को अराजक और ग़ैर-ज़िम्मेदार बना दिया है। मगर सचाई यह है कि इसमें सरकारों का भी बहुत बड़ा हाथ है। केबल टीवी अधिनियम को ठीक से लागू कराया जाता तो ऐसे हालात नहीं होते।
Satya Hindi News Bulletin। सत्य हिंदी समाचार बुलेटिन। रिपब्लिक की TRP बढ़ाने को हर महीने 15 लाख का भुगतान! ।बिहार चुनाव: दूसरे चरण में 3 बजे तक 44.51% मतदान
न्यूज़ चैनलों की ओर से एनबीए अक्सर तर्क देता है कि उसके द्वारा बनाया गया आत्म-नियमन का तंत्र अच्छे से काम कर रहा है। लेकिन क्या सच में ऐसा है यह एक छलावा है? यह छलावा नहीं है तो फिर टीआरपी स्कैम कैसे हो गया?
न्यूज़ चैनलों द्वारा टीआरपी हासिल करने के लिए घटिया हथकंडे आज़माने और कंटेंट के स्तर को गिराने के संबंध में अक्सर यह दलील दी जाती है कि बेचारे चैनल भी क्या करें, उन्हें भी तो खाना-कमाना है। तो क्या उनका बिजनेस मॉडल घटिया है?
टीआरपी स्कैम के बाद न्यूज़ चैनलों की रेटिंग देने वाली एजेंसी बार्क इस समय निशाने पर है। इससे पहले टैम इंडिया रेटिंग देती थी और वह भी ऐसी ही खामियों के लिए निशाने पर आई थी। लेकिन इसके बाद से क्या कुछ बदला है?
मुंबई टीआरपी घोटाले के बाद जब बार्क ने एलान किया कि वह अगले दो से तीन महीने तक न्यूज़ चैनलों की टीआरपी नहीं देगा तो पत्रकारों ने राहत की साँस ली होगी। लेकिन क्या इससे न्यूज़ चैनलों का कंटेंट सुधर जाएगा?
न्यूज़ चैनलों के पतन में केवल टीआरपी ही ज़िम्मेदार नहीं थी या है। टीआरपी की भूमिका बहुत सीमित सी है। टीआरपी बाज़ार का एक प्रभावी अस्त्र ज़रूर है, मगर बाज़ार के पीछे खड़ी पूँजी के उद्देश्य बड़े और विविधतापूर्ण हैं।
टीआरपी आने के बाद से न्यूज़ चैनलों में नई गिरावट आई है और इसीलिए टीआरपी स्कैम जैसे मामले सामने आ रहे हैं। लेकिन यह अकेला ज़िम्मेदार नहीं है। पढ़िए टीआरपी, हिंदुत्व की राजनीति और टीवी पत्रकारिता के बीच क्या है संबंध...
टीआरपी का ही दबाव था कि पहले पहल अपराध पर आधारित ख़बरों और कार्यक्रमों की बाढ़ आई। उन्हें मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया जाने लगा। सनसनी पर जोर दिया गया। नाटकीयता आई और फिर टीवी का चरित्र ही बदल गया।
मुंबई पुलिस के 'टीआरपी घोटाले' के भंडाफोड़ से टीवी की दुनिया में हंगामा मच गया। टीआरपी का भूत क्या है, इस पर सत्य हिंदी एक शृंखला प्रकाशित कर रहा है। पढ़िए, कैसे इसने टीवी चैनलों को अपनी चपेट में लिया...