पिछले एक महीने से दिल्ली-लखनऊ में जंग छिड़ी हुई थी। लगता है कि संघ के बीच-बचाव से युद्ध विराम हो गया है। मगर सवाल ये है कि इस जंग में कौन जीता और ये युद्ध विराम किन शर्तों पर हुआ है?
मोदी ममता की सरकार को कमज़ोर करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं, मगर ममता उनकी पार्टी को तोड़ने में लगी हैं। मुकुल रॉय और राजीब बैनर्जी जैसे बड़े नेता पार्टी छोड़ने के संकेत दे रहे हैं। ऐसे में वे बीजेपी को कैसे बचाएंगे?
अरसे बाद पहली बार टीका नीति पर सुप्रीम कोर्ट तनकर खड़ा हुआ है और उसने मोदी सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन क्या वह बड़े टकराव के लिए तैयार है?
प्रधानमंत्री द्वारा टीका मुफ़्त किए जाने के फ़ैसले का श्रेय सुप्रीम कोर्ट को दिया जा रहा है। मगर क्या ये माना जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट बदल गया है और उसकी विश्वसनीयता बहाल हो रही है?
पूर्व जस्टिस अरुण मिश्रा की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को बहुत से मानवाधिकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट करने की कोशिश बताया है
बेरोज़गारी के आँकड़े चरम पर पहुँच गए हैं, लेकिन मोदी सरकार के कानों में जूँ तक नहीं रेंग रही, आख़िर क्यों?हरवीर सिंह, जयशंकर, अशोक वानखेड़े, हरजिंदर, विजय त्रिवेदी
इस्रायल और हमास के बीच युद्ध विराम की घोषणा हो गई है, मगर क्या वह टिक पाएगा और क्या ये स्थायी शांति का रास्ता खोल पाएगा? वैल अव्वाद, फ़िरोज़ मीठीबोरवाला, शीबा असलम फ़हमी
वैक्सीन से जुड़ा सवाल करने वाले पोस्टरों पर दिल्ली पुलिस जिस तरह से कार्रवाई कर रही है, वह आपातकाल की याद दिलाती है। क्या अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आपातकाल की विधिवत् घोषणा नहीं कर देनी चाहिए?
इस्रायल और फिलिस्तीन के बीच फिर से संघर्ष शुरू हो गया है और इसमें कोई इस्रायल के साथ खड़ा हैं तो कोई फिलिस्तीन के साथ। सवाल उठता है कि किसके साथ खड़ा होना सही है और क्यों?
इस्रायल के हमले पर अरब देश क्यों खामोश हैं? क्या अमेरिका और विश्व बिरादरी इसमें दखल देगी और देगी तो किस तरह? फ़िरोज़ मीठीबोरवाला, मुंबई, डॉ. सुनीलम, भोपाल, शीबा असलम फ़हमी, दिल्ली
चुनाव आयोग मीडिया में आलोचना के ख़िलाफ़ कोर्ट की शरण में क्यों गया? मद्रास हाईकोर्ट की मौखिक टिप्पणियों के बाद मीडिया में चुनाव आयोग की आलोचना की बाढ़ आ गई थी। अब चुनाव आयोग चाहता है कि कोर्ट मीडिया का मुँह बंद करे। क्या ये सही है?
देश की सड़कों पर साल भर पहले के दृश्य फिर से नज़र आ रहे हैं। लॉकडाउन की आशंकाओं से घिरे मज़दूर दिल्ली, मुंबई और दूसरे बड़े शहरों से घर को चल पड़े हैं। सरकारें उन्हें भरासे में क्यों नहीं ले पाईं?
जब देश महामारी से बेहाल है तो अरबपतियों की तादाद बढ़ रही है, उनकी संपत्तियों में कई गुना की वृद्धि हो रही है। ऐसा क्यों हो रहा है? अदानी-अंबानी की तिजोरियाँ क्यों भर रही हैं? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट-