क्या सुप्रीम कोर्ट नागरिकों की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य को नहीं निभा रहा है और क्या ऐसा लगता है कि उसने व्यापक तौर पर सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में तीन साल तक जज रहने के बाद पद से रिटायर हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने साफ़ शब्दों में कहा है कि उन्हें किसी ने राज्यसभा पद की पेशकश नहीं की, पर वे इसे स्वीकार नहीं करते।
सुप्रीम कोर्ट के रंग ढंग पर लगातार उँगलियाँ उठ रही हैं। कहा जा रहा है कि वह सरकार के दबाव में काम कर रहा है, उसके हिसाब से फ़ैसले दे रहा है। ये आरोप भी न्यायिक क्षेत्र के ही लोग लगा रहे हैं। पूर्व जस्टिस मदन लोकुर भी सुप्रीम कोर्ट से निराश हैं और चाहते हैं कि वह आत्म निरीक्षण करे। मगर वह ऐसा करेगा क्या?
सरकार ने क्यों सु्प्रीम कोर्ट से कहा कि वो आदेश दे कि मीडिया कोरोना पर खबर बिना सरकार से कंफर्म किये न चलाये? क्या ये ख़बरों को सेंशर करने की कोशिश नहीं थी? आख़िर सरकार क्यों मीडिया पर कंट्रोल चाहती है? देखिए आशुतोष की बात।
भूखे भजन न होई गोपाला। पुरानी कहावत है। जब मैं हर रात इस चिंता में रहूँ कि कल सुबह खाना नसीब होगा कि नहीं, कितने बजे आएगा, कितना मिलेगा, ठीक इसी घड़ी कोई मेरी आध्यात्मिक चिकित्सा करने आ धमके तो मैं उसके साथ कैसा बर्ताव करूँगा?