सुप्रीम कोर्ट ने जिस अनुसूचित जाति एवं जनजाति को उपवर्ग में बाँटने की संभावना को लेकर इस हफ़्ते फ़ैसला दिया है, उस मसले पर अधिकतर राज्यों की सहमति नहीं रही है।
केंद्र सरकार ने पिछड़े वर्ग को विभिन्न उपजातियों में बाँटकर आरक्षण व्यवस्था करने पर विचार के लिए जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया है। इसे लेकर पिछड़ा वर्ग आयोग से भी राय माँगी गई।
आज सुप्रीम कोर्ट ने फिर कह दिया कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और सोशल मीडिया उबल पड़ा । अमरीकी अश्वेत के सवाल पर मानवीय दिखने वाले आरक्षण की चर्चा छिड़ते ही श्वेत हो गये । जाति को लेकर सड़ते भारतीय समाज में अपने मन की सफ़ाई का काम कब शुरू होगा ? पूछ रहे हैं शीतल पी सिंह
अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के सरकारी नौकरियों में और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आये सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ देश भर में आवाज़ उठने लगी है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि आरक्षण देना राज्य सरकारों की इच्छा पर निर्भर करेगा। सभी राज्य और केंद्र सरकारों को इस फ़ैसले पर सख्ती से अमल करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारें बाध्य नहीं हैं क्योंकि यह मौलिक अधिकार नहीं है।