सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए कि वह पुराने क़ानूनों का सख़्ती से पालन सुनिश्चित करवाये, वरना अगर ट्रोल आर्मी इसी तरह लोगों को परेशान करती रही तो फिर नये क़ानूनों की क्या ज़रूरत है।
सोशल मीडिया ने लोगों को सशक्त बनाया है या शक्तिहीन? यह सवाल इसलिए कि सोशल मीडिया अब लोगों को गुमराह, प्रभावित और दिग्भ्रमित करने का एक कपटी हथियार बन गया है।
सवर्ण युवती साक्षी से विवाह करने के बाद से दलित युवक अजितेश के ख़िलाफ मीडिया का एक हिस्सा सक्रिय है, सोशल मीडिया पर उनके लिए भद्दे कमेंट्स किए जा रहे हैं। क्यों?
क्या वोट के लिए मुफ़्त में सामान बाँटने जैसी पेशकश करना चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है? यदि नहीं है तो क्या इसे उल्लंघन के दायरे में नहीं होना चाहिए? यह सवाल एक ऐसे ही विज्ञापन के बाद उठ रहा है।