इज़रायल में निर्मित जासूसी करने वाले पेगासस सॉफ़्टवेयर या स्पाईवेयर की मदद से आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण के नाम पर नागरिक समाज के भी कुछ चिन्हित किए गए सदस्यों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल को भी इसी नज़रिए से देखा जा सकता है।
स्टेन स्वामी की मौत की कहानी और उनकी ही तरह राज्य के अपराधी घोषित किये जाने वाले अन्य लोगों की व्यथाएँ निरंकुश सत्ता की बर्बरता के अंतहीन ‘हॉरर’ सीरियल की तरह नज़र आती हैं।
कुछ लोगों को ऐसा क्यों महसूस हो रहा है कि देश में आपातकाल लगा हुआ है और इस बार क़ैद में कोई विपक्ष नहीं बल्कि पूरी आबादी है? घोषित तौर पर तो ऐसा कुछ भी नहीं है। न हो ही सकता है।
हम शायद महसूस नहीं कर पा रहे हैं कि संसद और विधानसभाओं की बैठकें अब उस तरह से नहीं हो रही हैं जैसे पहले कभी विपक्षी हो-हल्ले और शोर-शराबों के बीच हुआ करती थीं और अगली सुबह अख़बारों की सुर्खियों में भी दिखाई पड़ जाती थीं।
हाल ही में बीजेपी में शामिल होने वालों में कांग्रेस के जितिन प्रसाद को गिनाया जा सकता है। सचिन पायलट रास्ते में हो सकते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य, ज्योतिरादित्य सिंधिया, शुभेंदु अधिकारी, आदि की कहानियाँ अब पुरानी पड़ गई हैं।
जनता उनसे उनके ‘मन की बात’, उनके राष्ट्र के नाम संदेश, चुनावी सभाओं में दिए जाने वाले जोशीले भाषण सब कुछ धैर्यपूर्वक सुन लेती है पर अपने दिल की बात उनके साथ शेयर करने का साहस नहीं जुटा पाती है।
हमें एक ऐसे परिदृश्य की कल्पना करना प्रारम्भ कर देना चाहिए जिसमें फ़ेसबुक, ट्विटर, वाट्सऐप, इंस्टा, आदि जैसे सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म या तो हमसे छीन लिए जाएँगे या उन पर व्यवस्था का कड़ा नियंत्रण हो जाएगा।
नरेंद्र मोदी तीस मई को अपने प्रधानमंत्री काल के सात वर्ष पूरे कर लेंगे। कहा यह भी जा सकता है कि देश की जनता प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के साथ अपनी यात्रा के सात साल पूरे कर लेगी।
इस सेटेलाइट युग में भी मौतों के सही आँकड़े छुपाने के असफल और संवेदनहीन प्रयासों की तरह ही उस लहर से उत्पन्न होने वाले संताप और मौतों को भी ख़ारिज किया जाएगा, जिसकी कि हम बात करने जा रहे हैं।
अनुपम खेर ने मोदी की वापसी को लेकर पिछले दिनों क्या कह दिया था, हाल में जो कुछ कहा है उसका ‘सारांश’ यह है कि : “कोरोना संकट में सरकार ‘फ़िसल’ गई है और उसे ज़िम्मेदार ठहराना महत्वपूर्ण है...'
कोरोना महामारी से हो रही मौतों के बीच सोशल मीडिया पर कुछ नागरिक समूहों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफ़े की माँग यह मानकर की जा रही है कि इससे मौजूदा संकट का तुरंत समाधान हो जाएगा।
आज़ादी के बाद की स्मृतियों में अब तक के सबसे बड़े नागरिक संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी क्या संवेदनात्मक रूप से उतने ही विचलित हैं जितने कि उनके करोड़ों देशवासी हैं?
कोरोना के रिकॉर्ड संक्रमण के बीच देश इस समय एक अभूतपूर्व संकट से गुज़र रहा है। कर्णधारों को भनक नहीं लग पाई कि समूचा देश केवल एक साल के भीतर ही हारने लगेगा और वे मरने वालों की गिनती करते रह जाएँगे।