कंगना रनौत ने जब एक कार्यक्रम में कहा कि आज़ादी 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली है तो तालियाँ बजाने वाले लोग कौन थे? आख़िर किसी ने भी खड़े होकर विरोध क्यों नहीं जताया?
हाल में 13 राज्यों में 29 विधानसभा सीटों और 3 लोकसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी को आख़िर क्यों हिला कर रख दिया है? जानिए, वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग क्या लिखते हैं।
पिछली दिवाली पर देश भर में हताशा का माहौल था, इस बार हालात थोड़े अलग हैं। लेकिन लोगों में हताशा देखी जा सकती है और यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे हालात को जल्द से जल्द बेहतर करें।
गांधीवादी एस एन सुब्बाराव को कैसे याद किया जाएगा? आंदोलनों में उनकी भागीदारी कैसी थी? जानिए, उनको क़रीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग कैसे याद करते हैं।
क्या भारत को आज महात्मा गांधी के विचारों की ज़रूरत नहीं है? क्या मौजूदा सरकार और सत्तारूढ़ दल जानबूझ कर गांधी के विचारों पर हमले कर रही है? बता रहे हैं पत्रकार श्रवण गर्ग।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आख़िर देश में पॉजिटिव मीडिया क्यों चाहते हैं? खुद संघ के मुखपत्र ‘पाँचजन्य’ द्वारा एक उद्योग समूह को राष्ट्र-विरोधी बताना कितनी सकारात्मक ख़बर है?
देश में आज मीडिया की हालत क्या है और आम नागरिकों के लिए यह कितना बड़ा नुक़सान है? अधिकतर सम्पादक न तो अपने पाठकों को बताने को तैयार है और न ही कोई उससे पूछना ही चाहता है कि ख़बरों का ‘तालिबानीकरण’ किसके डर अथवा आदेशों से कर रहे हैं?
क्या आम जनता इस आशंका में रहती है कि प्रधानमंत्री बगैर किसी योजना के कभी भी कुछ भी घोषणा कर दे सकते हैं और उसका खामियाजा देश भुगतता रहेगा? पढ़ें श्रवण गर्ग का यह लेख।