हाल में 13 राज्यों में 29 विधानसभा सीटों और 3 लोकसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी को आख़िर क्यों हिला कर रख दिया है? जानिए, वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग क्या लिखते हैं।
पिछली दिवाली पर देश भर में हताशा का माहौल था, इस बार हालात थोड़े अलग हैं। लेकिन लोगों में हताशा देखी जा सकती है और यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे हालात को जल्द से जल्द बेहतर करें।
गांधीवादी एस एन सुब्बाराव को कैसे याद किया जाएगा? आंदोलनों में उनकी भागीदारी कैसी थी? जानिए, उनको क़रीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग कैसे याद करते हैं।
क्या भारत को आज महात्मा गांधी के विचारों की ज़रूरत नहीं है? क्या मौजूदा सरकार और सत्तारूढ़ दल जानबूझ कर गांधी के विचारों पर हमले कर रही है? बता रहे हैं पत्रकार श्रवण गर्ग।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आख़िर देश में पॉजिटिव मीडिया क्यों चाहते हैं? खुद संघ के मुखपत्र ‘पाँचजन्य’ द्वारा एक उद्योग समूह को राष्ट्र-विरोधी बताना कितनी सकारात्मक ख़बर है?
देश में आज मीडिया की हालत क्या है और आम नागरिकों के लिए यह कितना बड़ा नुक़सान है? अधिकतर सम्पादक न तो अपने पाठकों को बताने को तैयार है और न ही कोई उससे पूछना ही चाहता है कि ख़बरों का ‘तालिबानीकरण’ किसके डर अथवा आदेशों से कर रहे हैं?
क्या आम जनता इस आशंका में रहती है कि प्रधानमंत्री बगैर किसी योजना के कभी भी कुछ भी घोषणा कर दे सकते हैं और उसका खामियाजा देश भुगतता रहेगा? पढ़ें श्रवण गर्ग का यह लेख।
अपने पिछले आलेख में मैंने विभाजन की विभीषिका को एक स्मृति दिवस के रूप में मनाने के पीछे के मक़सद को ढूँढने की कोशिश की थी पर सफलता नहीं मिली। आलेख पर जो प्रतिक्रियाएँ मिली हैं उनसे कुछ संकेत ज़रूर मिलते हैं....
खेल रत्न पुरस्कार की पहचान को बदलने के लिए एक सौम्य व्यक्तित्व के धनी, आतंकवाद का शिकार हुए एक पूर्व प्रधानमंत्री और सर्वोच्च अलंकरण ‘भारत रत्न‘ से विभूषित राजीव गांधी के नाम का चयन क्यों किया गया?
प्रधानमंत्री का भाषण इसलिए भी महत्वपूर्ण होगा कि पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों से झुलसी हुई सत्तारूढ़ बीजेपी छह महीनों बाद ही उत्तर प्रदेश सहित पाँच राज्यों में चुनावों का सामना करने जा रही है।
पेगासस जासूसी काण्ड का खुलासा क्या निजता पर हमले को नहीं दिखाता है? मीडिया के एक धड़े द्वारा किए गए इतने सनसनीखेज खुलासे के बावजूद भारतीय मन में उदासीनता क्यों है?