समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है कि राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री के चौथे सम्बोधन के बाद भी उम्मीदों की रोशनी किस तरह से ढूँढी जानी चाहिए? तीन सप्ताह के ‘लॉकडाउन’ को लगभग तीन सप्ताह (19 दिन) और बढ़ा दिया गया है।
देश को आहिस्ता-आहिस्ता ‘लॉकडाउन’ से बाहर निकालने की तैयारियाँ चल रही हैं। महामारी से जूझने के दौरान चारों ओर हृदय-परिवर्तन की जो लहर दिखाई दे रही है वह क्या स्थाई होने जा रही है।
कोरोना वायरस पर काबू पाने की तैयारियों पर प्रधानमंत्री की राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग में केरल मॉडल पर सहमति बन रही है। अगर ऐसा होता है तो क्या मार्क्सवादी मुख्यमंत्री के केरल मॉडल को प्रधानमंत्री मोदी अपनाएँगे?
लम्बे समय तक चल सकने वाले लॉकडाउन के दौरान हमें इस एक सम्भावित ख़तरे के प्रति भी सावधान हो जाना चाहिए कि अपने शरीरों को ज़िंदा रखने की चिंता में ही इतने नहीं खप जाएँ कि हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक आत्माएँ और आस्थाएँ ही मर जाएँ।
जिन सवालों के जवाब माँगे जाने चाहिए उन्हें कोई पूछने की हिम्मत भी नहीं कर रहा है, विपक्ष भी नहीं। और जो कुछ कभी पूछा ही नहीं गया उसके जवाब हर तरफ़ से प्राप्त हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने समूचे देश को आश्चर्यचकित करते हुए भाव-विभोर कर दिया। जनता इस तरह से भावुक होने के लिए तैयार ही नहीं थी। पिछले छह-सात सालों में ‘शायद’ पहली बार ऐसा हुआ होगा कि 130 करोड़ लोगों से उन्होंने अपने ‘मन की बात’ इस तरह से बाँटी होगी।