महाराष्ट्र में एनसीपी में बगावत के बाद अब बिहार में नीतीश कुमार के जेडीयू को लेकर अलग-अलग कयास क्यों लगाए जा रहे हैं? जानिए, आख़िर बिहार की राजनीति में चल क्या रहा है।
गैर भाजपाई दलों को एक सूत्र में पिरोने के लिए कोई मुद्दा चाहिए था, वो उन्हें राहुल गांधी के रूप में मिल गया है। लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि गैर भाजपाई दलों की एकता कब तक कायम रह पाती है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार शैलेश ने इसी का जायजा लिया है।
देश के ताजा राजनीतिक परिदृश्य में विपक्षी एकता अब सबसे महत्वपूर्ण हो गई है। विपक्ष के बिना एक हुए, बीजेपी को हराया नहीं जा सकता लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार शैलेश का कहना है कि विपक्षी एकता इतना आसान नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के पास क्या विकल्प हैं। पढ़िए उनका नजरियाः
रामचरितमानस को लेकर पहले बिहार में आरजेडी नेता ने और फिर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता ने टिप्पणी की। इस पर विवाद हुआ। तो विवाद से आख़िर किसे फायदा होगा?
आज़ादी के बाद से ही आदिवासियों की भलाई की चिंता की जाती रही है, लेकिन कितना भला किया जा सका है? क्या आज़ादी के बाद पहली आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बनने के बाद हालात पहले से बदलेंगे?
प्रधानमंत्री के बिहार दौरे के दौरान जेडीयू और आरजेडी का रूख उनके प्रति इतना नरम क्यों रहा? जातीय जनगणना, विशेष राज्य की माँग जैसे अहम मुद्दों पर भी ये दल चुप रहे। लेकिन क्यों?
बिहार में जाति जनगणना के मुद्दे पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की एक राय क्या बनती दिखी, कयास लगाए जाने लगे कि क्या अब बीजेपी और जेडीयू गठबंधन टूटने वाला है? आख़िर बार-बार गठबंधन पर ऐसे सवाल क्यों उठते हैं?
बीजेपी की मदद से सरकार चलाने के वावजूद नीतीश इफ़्तार पार्टी कर सकते हैं और लालू परिवार को उसमें आमंत्रित कर सकते हैं। इसका क्या मतलब है और बीजेपी के लिए क्या संदेश है?
बिहार में बीजेपी और जेडीयू की गठबंधन सरकार बनने के बाद से ही अनबन की ख़बरें आती रही हैं तो क्या विधानसभा में अध्यक्ष के साथ नीतीश कुमार का बयान उस खटास को दिखाता है? क्या दोनों दलों के बीच में सबकुछ ठीक नहीं है?
उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले नेहरू जैसी शख्सियतों पर हमला क्यों किया जा रहा है और क्यों धर्म निरपेक्ष नज़रिए को छोड़ हिंदू नज़रिए से इतिहास को समझने की कोशिश हो रही है?