बिहार में बार-बार पलटी मारने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कोई जवाब नहीं। 2022 में वो जिससे नाखुश थे, 2024 में उनसे वो खुश हैं। लेकिन उनकी खुशी-नाखुशी का पैमाना बदलता रहता है। वरिष्ठ पत्रकार शैलेश की बिहार की राजनीति पर बहुत नजदीक से नजर रहती है। वो नीतीश के गुस्से को समझाने की कोशिश कर रहे हैं।
भारत की राजनीति के लिहाज से 2023 कैसा रहा? जो घटनाक्रम हुए उसमें संसद, सरकार और न्यायपालिका में किस तरह के घटनाक्रम देखे गए? कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष ने क्या हासिल किया और बीजेपी का रुख कैसा रहा?
बिहार विधानसभा में जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान नीतीश कुमार के यौन शिक्षा को लेकर बयान पर आख़िर हंगामा क्यों मचा है? क्या नीतीश को इसका बड़ा नुक़सान होगा?
महिला आरक्षण बिल पास तो हो गया लेकिन इंडिया गठबंधन बहुत बेहतरीन तरीके से ओबीसी आरक्षण का मुद्दा बहस के केंद्र में ले आया है। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के अन्य दलों ने महिला कोटे के अंदर ही ओबीसी महिलाओं का कोटा तय करने और जाति जनगणना की मांग की है। मोदी सरकार के बिल में ओबीसी महिलाओं का कोटा गायब कर दिया गया है। ओबीसी कोटा अब चुनावी मुद्दा भी बन सकता है।
भारतीय संस्कृति में डाकुओं की भी एक विशेष पहचान रही है। प्रचलित कथाओं के मुताबिक़ अंगूलिमाल नाम का एक ख़तरनाक डाकू बुद्ध के प्रभाव से बौद्ध भिक्षु बन गया था। जानिए, सुल्ताना डाकू के बारे में।
बसपा प्रमुख मायावती ने साफ़ कर दिया है कि आने वाले दिनों में किसी भी राजनैतिक गठबंधन में शामिल नहीं होगी। अकेले दम पर चुनाव लड़ने की आख़िर उनकी रणनीति क्या है?
बिहार की चुनावी राजनीति को लेकर तमाम टीवी चैनल जो आंकड़ों की बाजीगरी कर रहे हैं, वो कितना सच है। क्या बिहार में नीतीश कुमार वाकई कमजोर हो रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार शैलेश का सटीक विश्लेषण पढ़िएः
बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार की नाराज़गी की ख़बर क्यों आ रही है? क्या उनकी किसी महत्वाकांक्षा को धक्का लगा है? जानिए, क्या है राजनीति।
महाराष्ट्र में एनसीपी में बगावत के बाद अब बिहार में नीतीश कुमार के जेडीयू को लेकर अलग-अलग कयास क्यों लगाए जा रहे हैं? जानिए, आख़िर बिहार की राजनीति में चल क्या रहा है।
गैर भाजपाई दलों को एक सूत्र में पिरोने के लिए कोई मुद्दा चाहिए था, वो उन्हें राहुल गांधी के रूप में मिल गया है। लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि गैर भाजपाई दलों की एकता कब तक कायम रह पाती है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार शैलेश ने इसी का जायजा लिया है।
देश के ताजा राजनीतिक परिदृश्य में विपक्षी एकता अब सबसे महत्वपूर्ण हो गई है। विपक्ष के बिना एक हुए, बीजेपी को हराया नहीं जा सकता लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार शैलेश का कहना है कि विपक्षी एकता इतना आसान नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के पास क्या विकल्प हैं। पढ़िए उनका नजरियाः