आरएसएस के विचारक सांसद प्रो. राकेश सिन्हा क्यों कहते हैं कि 'केवल संविधान के प्रति वफादारी की कसम खाने से इसका जवाब नहीं दिया जा सकता'? सवाल है कि किसके प्रति वफादारी होनी चाहिए?
अडानी पर अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) भी अडानी के साथ खड़ा हो गया है। उसके मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने खुलकर उन लोगों को घेरा है जो अडानी को लेकर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। आमतौर पर संघ ऐसे विवादास्पद आर्थिक मामलों में हाथ नहीं सेंकता है। आखिर कुछ तो इसका मतलब है।
बीजेपी-आरएसएस को मुगल शब्द से चिढ़ है। अंग्रेजों की बनाई बिल्डिंग में उद्यान का नाम सिर्फ मुगलों के नाम पर है। मुग़ल गार्डन का नाम बदलना बताता है कि यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सपनों के भारत की हत्या का प्रयास है। नेताजी का नाम जपना बस इस गुनाह को छिपाने की कोशिश है।
आरएसएस के तीन प्रमुख नेताओं ने मुस्लिम लीडरशिप के साथ फिर बैठक की है। संघ मुसलमान नेताओं से संपर्क की कोशिश में रहता है लेकिन अगले दिन डीएनए को लेकर बहस छेड़ देता है। कौन लोग हैं जो बातचीत कर रहे हैं और क्या उससे दोनों समुदायों के बीच कोई पुल बनेगा।
आज नेताजी की जयंती है और इसे देश में पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। आरएसएस के राजनीतिक मुखौटे बीजेपी सरकार बहुत जोरशोर से कार्यक्रम कर रही है। लेकिन जरा जानिए कि नेताजी आरएसएस की विचारधारा के क्यों खिलाफ थे। इतिहास पर नजर डालता यह महत्वपूर्ण लेख जरूर पढ़िए।
राहुल की भारत यात्रा अब ख़त्म होने को है । वो लगातार संघ परिवार और उनकी विचारधारा पर हमले कर रहे हैं । क्यों वो कहते हैं कि गर्दन कटा लेंगे लेकिन आरएसएस से समझौता नहीं करेंगे ? क्या वो आरएसएस से नफ़रत करते हैं या फिर पार्टी की विचारधारा को नया आयाम दे रहे हैं ?
धर्मभास्कर' पुरस्कार वितरण के कार्यक्रम में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि धर्म भारत का आवश्यक स्वरूप ('सत्व') है, सनातन धर्म हिंदू राष्ट्र है।
अंग्रेजों द्वारा शुरु
शिक्षा प्रणाली ने भारत के 'सत्व' को छीनने की कोशिश की, जिसका नतीजा यह हुआ कि
देश गरीब हो गया।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक इंटरव्यू में देश के मुसलमानों पर बात की और कहा उन्हें डरने की जरूरत नहीं हैं. वे रहें पर....मोहन भागवत की इस टिप्पणी का क्या अर्थ है? आज की जनादेश चर्चा
मोहन भागवत मुसलमानों के बग़ैर हिंदुत्व को अधूरा बता रहे थे । अब कह रहे हैं कि एक हज़ार साल का युद्ध है । मुसलमान अपने को श्रेष्ठ न समझे । यहाँ रहना चाहे, तो रहे । क्यों वो हिंदुत्ववादियों की उग्रता को सही ठहरा रहे हैं ? क्या वो 2024 में मोदी की जीत का रास्ता तैयार कर रहे हैं ?
क्या संघ प्रमुख भागवत संविधान से ऊपर हैं? वे किस हैसियत से मुसलमानों के सामने हिंदुस्तान में रहने की शर्तें रख रहे हैं? वे उन्हें अंदरूनी ख़तरा बताकर कौन सी देशभक्ति दिखा रहे हैं? क्या उच्चतम न्यायालय को उनके वक्तव्यों का संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए? क्या भागवत 2024 के लिए पिच तैयार करने के लिए इस तरह की बातें कर रहे हैं?
आरएसएस क्या अब महात्मा गांधी और टैगोर को भी अपनाने की राह पर है? आख़िर मोहन भागवत ने पांचजन्य को दिए साक्षात्कार में इनकी विचारधारा को साथ लेकर चलने की बात क्यों कह रहे हैं?
आरएसएस प्रमुख ने समलैंगिकता और एलजीबीटी समुदाय पर खुलकर विचार व्यक्त किए हैं। 2016 से चल रहा यह सिलसिला पहली बार सामने आया है। आखिर इसकी वजह क्या है, क्या संघ प्रमुख के बयान के बाद केंद्र की मोदी सरकार समलैंगिक विवाह के रजिस्ट्रेशन को मंजूरी देगी, क्या समलैंगिक विवाहों के जोड़ों को एक परिवार की तरह मानकर सरकारी स्कीमों के जरिए मदद की जाएगी। इन सारे सवालों का विश्लेषण इस रिपोर्ट मेंः