बाबा रामदेव अपने बयानों को लेकर आजकल फिर सुर्खियों में हैं। कोरोना महामारी में हो रही मौतों के लिए एलोपैथ और डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराने वाले बाबा की जुबान थमने का नाम नहीं ले रही है।
जब दिल्ली, लखनऊ से लेकर मुंबई, अहमदाबाद तक कोरोना से हाहाकार मचा हुआ था, अस्पतालों में बिस्तर नहीं थे, वेंटीलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध नहीं हो रहे थे तब आरएसएस स्वयंसेवक कहाँ थे?
किसान आंदोलन के 6 माह पूरे हो गए हैं और मोदी की सत्ता के सात साल। अभी मोदी के पास भी समय है और किसानों के पास भी। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता पहले ही आंदोलन को तीन साल तक चलाने की बात कह चुके हैं।
जहां एक ओर पूरे देश में कोरोना महामारी से हाहाकार मचा हुआ है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी फरवरी-मार्च 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटी है।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के जस्टिस मदान ने एक घर से कथित तौर पर भागे हुए जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने से इनकार करते हुए लिव इन रिलेशनशिप को सामाजिक और नैतिक रूप से ग़लत कहा है।
यूपी में पंचायत चुनाव बीत चुके हैं। चुनाव का हलाहल गंगा में तैरती लाशों के रूप में प्रकट हो रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे परिवारों को एक करोड़ रुपए मुआवजा देने का सरकार को निर्देश दिया है। क्या योगी इससे परेशान दिख रहे हैं?
यूपी में पंचायत चुनाव शुरू हो चुके हैं। 75 ज़िलों की 58194 ग्राम पंचायतों के लिए चार चरणों में वार्ड सदस्य से लेकर प्रधान, बीडीसी और ज़िला पंचायत सदस्यों के चुनाव होंगे। परिणाम 2 मई को आएँगे।
क्या कृषि क़ानून केवल कारपोरेट घरानों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए हैं? क्या इसका कोई वैचारिक आधार भी हो सकता है? क्या मोदी सरकार की कारपोरेटपरस्त आर्थिक नीति के पीछे कोई समाजनीति भी है?
मोदी समर्थक बॉलीवुड और क्रिकेट के स्टारों ने भी विदेशी हस्तियों द्वारा किसान आंदोलन के समर्थन को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करार देते हुए उनकी आलोचना की है।
नरेंद्र मोदी के नए लुक का रहस्य क्या है? इसके राजनीतिक मायने क्या हैं? ज्यादातर लोगों का मानना है कि नरेंद्र मोदी का नया लुक बंगाल चुनाव के मद्देनज़र है। बंगाल में सियासी फायदे के लिए नरेंद्र मोदी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के वेश में दिख रहे हैं।
गणतंत्र दिवस पर किसानों की परेड में एक गुट द्वारा हिंसा की गई। समूचे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की रिपोर्टिंग आईटीओ, बादली और नांगलोई में होने वाली छिटपुट हिंसा पर ही केंद्रित थी, जबकि 95 फ़ीसदी ट्रैक्टर परेड शांतिपूर्वक रही।
किसान आंदोलन से संघ के एजेंडे को बहुत ज़्यादा नुक़सान होने वाला है। संघ हिंदुत्व के एजेंडे को जल्दी से जल्दी पूरा करने की जुगत में है। क्या इस कारण मोदी और संघ में मतभेद है?