राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा धार्मिक आयोजन है या फिर राजनीतिक? यदि यह धार्मिक आयोजन है तो फिर साधु-संतों से ज़्यादा राजनेता इसके हिस्सा क्यों हैं और केंद्र में साधु-संत न होकर कोई और क्यों है?
कांग्रेस द्वारा राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के निमंत्रण को अस्वीकार करने के बाद राजनीति तेज हो गई है। कांग्रेस के इस कदम के बाद भाजपा कांग्रेस पर हमलावर है। वहीं कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि भाजपा भगवान राम के नाम पर राजनीति कर रही है।
अयोध्या आने वालों को ठहरने और खाने-पीने की कोई दिक्कत नहीं होगी। भाजपा के प्रमुख नेताओं की बुधवार को अयोध्या में बैठक हुई, जिसमें पार्टी ने फैसला किया है कि 25 जनवरी से अगले दो महीने तक अयोध्या में बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को कोई असुविधा नहीं होने दी जाएगी। उनके ठहरने और खाने-पीने का पूरा इंतजाम दिव्य रहेगा। सीएम योगी आदित्यनाथ ने 11 जनवरी को कहा कि 22 जनवरी को अयोध्या में सौ फ्लाइटें उतरेंगी। गुरुवार से अयोध्या-अहमदाबाद के बीच फ्लाइट शुरू हो गई।
आखिर राममंदिर के उद्घाटन में जाने पर कांग्रेस ने फ़ैसला कर लिया । पार्टी ने तय किया कि खडगे और सोनिया नहीं जायेंगे । क्या इससे कांग्रेस को फ़ायदा होगा या नुकसान ? आशुतोष ने साथ चर्चा में विजय त्रिवेदी, विवेक देशपांडे, अफ़रोज़ आलम, तुषार गुप्ता और शीतल पी सिंह ।
काफी माथापच्ची के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। क्या यह राजनीतिक रूप से बुद्धिमानी भरा कदम है? क्या इसका 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि बीजेपी इस इनकार को सोनिया-खड़गे के खिलाफ शस्त्रागार के रूप में इस्तेमाल करेगी।
लोकसभा चुनाव के लिहाज से जिस राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम को अहम माना जा रहा है, उसको लेकर कांग्रेस ने एक बड़ा क़दम उठाया है। जानिए, वह बड़ा फ़ैसला क्या और इससे कांग्रेस को फायदा या नुक़सान होगा।
अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होने वाला है। देश में राम मंदिर को लेकर भारी उत्साह देखा जा रहा है। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव का विचार है कि यह सब उस लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है, जिसकी कल्पना भारतीय संविधान में की गई हैं। यह लेख उन राम भक्तों को भी पढ़ने की जरूरत है जो उत्साह में लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को भूलते जा रहे हैं। जरूर पढ़िएः
राममंदिर का न्योता कांग्रेस की गले की हड्डी बना । क्यों नहीं कांग्रेस करती कोई फ़ैसला ? किस बात का है डर ? क्या वो बीजेपी की जाल में उलझ गई है या फिर उसे मुस्लिम वोटरों की नाराज़गी का ख़तरा है ! आशुतोष के साथ चर्चा में विजय त्रिवेदी, जय मृग, प्रिया सहगल, अमिताभ तिवारी, अफ़रीदा रहमान और ब्रिजेश शुक्ला
अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे से शिवसेना और ठाकरे परिवार भी जुड़ा रहा है। बाबरी मसजिद गिराए जाने के समय शिवसेना के कई कार्यकर्ता अयोध्या में थे और उन्होंने हिस्सा लिया था। लेकिन अब जब मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है तो उद्धव ठाकरे को निमंत्रण नहीं भेजा गया। उद्धव ने इस पर एतराज भी किया। अब उद्धव ने 22 जनवरी को राम मंदिर के लिए अपना कार्यक्रम जारी कर दिया है। जानिएः
Satya Hindi news Bulletin हिंदी समाचार | मोदी लोकार्पण करेंगे तो मैं ताली बजाऊंगा क्या: रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में जाने से शंकराचार्य ने मना किया | शंकराचार्य: राम मंदिर पर राजनीति हो रही है
क्या BJP राम मंदिर की आड़ में जातियों का जोड़-तोड़ करना चाहती है? क्या पिछड़ी और दलित जातियों को उद्घाटन में आमंत्रित करना मंडल को कमज़ोर करने की एक और कोशिश है? सामाजिक न्याय की ताक़तें हिंदुत्व के इस हमले का मुक़ाबला कैसे करेंगी?
22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा या अभिषेक समारोह में देश के प्रत्येक जिले और देश भर के अधिकांश प्रखंडों से 150 से अधिक जाति- समुदायों के प्रतिनिधि अयोध्या में शामिल होंगे।
राम मंदिर के नाम पर बीजेपी भारत की केंद्रीय सत्ता पर काबिज हो चुकी है। लेकिन क्या आपको पता है कि शुरुआत में आरएसएस का राम मंदिर को लेकर क्या रुख था? क्या उसे भगवान राम की छवि स्वीकार्य है? अब राम मंदिर ही उसका मुख्य मुद्दा क्यों है?