देश के 44 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 6,074 पद रिक्त हैं, जिनमें से 75 प्रतिशत पद आरक्षित श्रेणी के हैं। अन्य पिछड़े वर्ग के आधे से ज़्यादा पद खाली पड़े हैं।
केंद्र सरकार ने ओबीसी की जनगणना कराने की मांग खारिज कर दी है। संसद में सरकार ने कहा है कि ऐसी कोई योजना नहीं है। बीजेपी और बिहार में उसके सहयोगी जदयू के बीच टकराव की पूरी संभावना बन रही है।
दिल्ली ग़ाज़ियाबाद बॉर्डर पर देवराज पिछले 80 दिनों से धरने पर बैठे हैं। वह कहते हैं कि 81वाँ दिन है और उम्मीद है कि सरकार यह क़ानून वापस ले लेगी और हम लोग अपनी खेती-किसानी करने अपने-अपने घरों को चले जाएँगे।
सरकार ने सुधारों के नाम पर जनता के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस को बयानबाजियों और दूसरे के धरनों व रैलियों में जाने से इतर अपनी रणनीति साफ़ करने की ज़रूरत है।
असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्व शर्मा ने घोषणा की है कि अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट विद्यार्थियों के खातों में क्रमशः 1,500 रुपये और 2,000 पहुँच जाएँगे। पिछली परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाली लड़कियों को स्कूटर दिया जा रहा है।
बिहार की राजनीति में 2021 नई चुनौतियाँ लेकर आया है। राज्य में 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू का शर्मनाक प्रदर्शन रहा। अब आरसीपी सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया है।
अंतरधार्मिक शादी करने पर उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले के मुहम्मद जावेद के 14 नज़दीकी रिश्तेदार जेल में हैं। क्या बीजेपी के लिए ‘लव जिहाद’ धर्म परिवर्तन से ज़्यादा राजनीतिक मसला नहीं है?
जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच वैचारिक टकराव की तरह-तरह की चर्चाएँ होती हैं, नीतियों को लेकर दोनों में मतभेद भी थे। लेकिन उनका आपसी प्रेम अंतिम समय तक बना रहा।
बिहार के चुनाव में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में जगह-जगह पर वैचारिक टकराव के साथ तालमेल में कमी नजर आ रही है। वहीं आरजेडी-कांग्रेस-वामदलों का गठजोड़ पूरे दमखम के साथ मैदान में है।
नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में बहुत सुनहरे सपने लेकर सत्ता में आए थे। विधानसभा चुनाव के पहले जब नीतीश कुमार जनता से वादा करते थे कि किसी बिहारी को भूख के कारण बिहार नहीं छोड़ने दूँगा। लेकिन उस सपने का क्या हुआ?
हाथरस मामले से पहले से ही हाल के वर्षों में बलात्कार को लेकर नई धारणा बनकर उभरी है कि तमाम मामलों को जातीय व धार्मिक नज़रिए से देखा जाने लगा है। आख़िर क्यों?
दीन दयाल उपाध्याय की मौत की सीबीआई जाँच को लेकर न्यायालय ने उँगलियाँ उठाईं। जस्टिस चंद्रचूड़ आयोग ने भी मौत को रहस्यमय बताया। जनसंघ के प्रमुख रहे बलराज मधोक ने भी कई संदेह जताए। तो अभी भी इस पर क्यों बना हुआ है रहस्य?