पिछले सात महीनों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में तारतम्यता नहीं है, एक तरह का विरोधाभास उनमें देखा जा सकता है। इस विरोधाभास के क्या मायने हैं? पेश है क़ानूनी एवं संवैधानिक मामलों के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार एन. के. सिंह के साथ वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की बातचीत।