किसी मुल्क में हर मोर्चे पर जब हालात बदतर होते हैं तो लोग बौद्धिक लोगों की तरफ देखते हैं। लेकिन जनता चाहे तो खुद अपनी रोशनी बन सकती है। जहां भी है वो चाहे तो एक दीप से दूसरा दीप जला सकती है। वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी ने एक मशहूर मराठी कविता के जरिये अपनी बात कही है, जरूर पढ़ियेः