राहुल गांधी को दो साल की सजा होने और संसद सदस्य से अयोग्य होने के बाद एकजुट हुए विपक्ष पर प्रधानमंत्री ने अब भ्रष्टाचारियों का मंच होने का आरोप लगाया। जानिए उन्होंने और क्या कहा।
विपक्षी एकता में कथित दरार को लेकर जो भी कयास लगाए जा रहे थे, उसका शिवसेना (यूबीटी) ने आज पटाक्षेप कर दिया। शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने कहा कि वो विपक्ष के साथ है।
गैर भाजपाई दलों को एक सूत्र में पिरोने के लिए कोई मुद्दा चाहिए था, वो उन्हें राहुल गांधी के रूप में मिल गया है। लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि गैर भाजपाई दलों की एकता कब तक कायम रह पाती है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार शैलेश ने इसी का जायजा लिया है।
विपक्षी एकता में आज एक बड़ी कामयाबी उस समय मिली जब 17 दल कांग्रेस के साथ न सिर्फ बैठे बल्कि काले कपड़े पहनकर विरोध प्रदर्शन में भी शामिल हुए है। हालांकि काले कपड़े का निर्देश कांग्रेस सांसदों को था। लेकिन सबसे बड़ा घटनाक्रम ममता बनर्जी की टीएमसी के शामिल होने का है। अभी तक टीएमसी विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं हो रही थी।
देश के ताजा राजनीतिक परिदृश्य में विपक्षी एकता अब सबसे महत्वपूर्ण हो गई है। विपक्ष के बिना एक हुए, बीजेपी को हराया नहीं जा सकता लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार शैलेश का कहना है कि विपक्षी एकता इतना आसान नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के पास क्या विकल्प हैं। पढ़िए उनका नजरियाः
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि सरकार केंद्रीय एजेंसियों का गलत तरीक़े से इस्तेमाल करते हुए विपक्षी नेताओं पर जानबूझकर निशाना बना रही है। जानिए कोर्ट में क्या दलील दी गई।
विपक्षी एकता को झटके लगना शुरू हो गए हैं। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उधर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी कहा है कि सपा इस बार अमेठी और रायबरेली से लड़ेगी। दोनों गांधी परिवार की परंपरागत सीटें हैं। दोनों के बयान और घटनाक्रम विपक्षी एकता को लेकर कुछ और इशारा कर रहे हैं।
क्या 2024 के लिए विपक्षी एकता की कोई संभावना है? मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि दोनों दलों के बीच बैक-चैनल से बातचीत चल रही है? तो क्या इसका कुछ नतीजा निकल पाएगा?
2024 के आम चुनाव में महज एक साल का समय बचा हुआ है। इसकी तैयारियां शुरु हो चुकी हैं। इन तैयारियों में सबसे अहम सवाल है कि नौ साल से सत्ता में काबिज बीजेपी को अगला चुनाव जीतने से कैसे रोका जाए, हर राजनीतिक दल इसी कवायद में लगा हुआ है।
मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल को अब 'अमृतकाल' नाम दिया है तो विपक्षी दल इसे 'अघोषित आपातकाल' क़रार दे रहे हैं। आख़िर सच क्या है? विपक्षी दल आख़िर किस आधार पर यह आरोप लगा रहे हैं?
क्या 2024 के लिए विपक्षी एकता की कोई संभावना है? यदि ऐसा है तो फिर ममता बनर्जी अकेले चुनाव लड़ने की बात क्यों कह रही हैं? क्या विपक्ष एकजुट हो भी पाएगा?