पेगासस तकनीक के सहारे जासूसी की अंतरराष्ट्रीय ख़बर के बाद इस पर बहस छिड़ गई है कि क्या ऐसी तकनीक की इज़ाज़त किसी रूप में देनी चाहिए जो राज्य के लिए हमारी निजता का पूरी तरह से अतिक्रमण करना इतना आसान बना दे?
पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए जासूसी कराए जाने पर दुनिया भर में तहलका मचा हुआ है। भारत ही नहीं, फ्रांस, मोरक्को, मेक्सिको, इज़रायल, ब्रिटेन व हंगरी समेत कई देशों में इसका व्यापक विरोध हुआ है, कुछ सरकारों ने इसकी जाँच के आदेश दे दिए हैं।
इजराइली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर पर हंगामा मचा है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसके माध्यम से दुनिया भर में लोगों पर जासूसी कराई गई। जानिए अब तक कौन-कौन नाम सामने आए-
जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता, राज्य की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से जुड़े लोग, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और दूसरे लोग भी पेगासस सॉफ़्टवेअर के निशाने पर थे।
केंद्रीय जाँच ब्यूरो के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को 23 अक्टूबर 2018 की बीच रात को जब बर्खास्त किया गया, उसके तुरन्त बाद पेगासस सॉफ़्टवेअर उनके तीन फ़ोन नंबरों पर नज़र रखने लगा।
एनएसओ का कहना है कि वह पेगासस सिर्फ़ सरकारों या उनकी संस्थाओं को बेचती है। तो क्या भारत में भारत सरकार यह कर रही है? या कोई और सरकार इसके ज़रिए भारत के पूरे तंत्र की जासूसी कर रही है? दोनों ही गंभीर चिंता का विषय हैं।
पेगासस स्पाइवेयर दुनिया भर में चर्चा में है। इजरायली कंपनी एनएसओ पेगासस स्पाइवेयर को क्यों तैयार किया? आख़िर इसकी शुरुआत किस मक़सद से हुई थी और यह अब क्या कर रही है?
कर्नाटक की कांग्रेस-जनता दल सरकार भी पेगासस सॉफ़्टवेअर जासूसी के निशाने पर थी। लीक हुए डेटाबेस में इस सरकार के लोगों के फ़ोन नंबर भी पाए गए हैं। यह साल 2019 में उस समय की बात है।
जिस पेगासस स्पाइवेयर से भारत में नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, जजों की जासूसी कराए जाने के आरोपों को सिरे से खारिज किया जा रहा है उसी पेगासस से कई फ्रांसिसी पत्रकारों की जासूसी के आरोपों पर फ्रांस में जाँच शुरू की गई है।