नोटबंदी में पंक्तिबद्ध लोगों की मौतें से लेकर पिछले साल कोरोना के समय अविवेकपूर्ण लॉकडाउन में सैकड़ों मज़दूरों की मौत, कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन, दवाइयों आदि के अभाव में हजारों लोगों की जान चली गई।
भाजपा सरकार ने महामारी से जुड़े शासन के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों जैसे: ऑक्सीजन उत्पादन, उत्पादन का नियंत्रण और कोविड-19 के इलाज से जुड़ी दवाओं जैसे रेमडेसिविर का वितरण आदि का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था। लेकिन तैयारी कैसी हुई?
देश में कोरोना संकट के लिए चौतरफ़ा आलोचनाओं झेल रहे प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर सोशल मीडिया पर फिर से किरकिरी हुई है। एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया के नाम से मिलती-जुलती वेबसाइट ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ की तो निशाने पर आ गए।
मेडिकल जर्नल लांसेट ने कोरोना से निपटने के प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों को लेकर आलोचनात्मक संपादकीय छापा है। पत्रिका ने लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार कोरोना महामारी से निपटने से ज़्यादा आलोचनाओं को दबाने में लगी हुई दिखी।
कोरोना महामारी से हो रही मौतों के बीच सोशल मीडिया पर कुछ नागरिक समूहों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफ़े की माँग यह मानकर की जा रही है कि इससे मौजूदा संकट का तुरंत समाधान हो जाएगा।
कोरोना ने विकराल रूप धारण कर लिया है। प्रतिदिन साढ़े तीन-चार लाख के दायरे में संक्रमित लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है। उसी अनुपात में मौतें भी हो रही हैं। बार-बार यह सवाल ज़हन में उठता है कि आख़िर चूक कहाँ हुई।
प्रधानमंत्री मोदी के 'मन की बात' पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के एक ट्वीट से बवाल मच गया। उन्होंने कहा कि 'प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मन की बात की, बेहतर होता कि वह काम की बात सुनते भी'।
आज़ादी के बाद की स्मृतियों में अब तक के सबसे बड़े नागरिक संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी क्या संवेदनात्मक रूप से उतने ही विचलित हैं जितने कि उनके करोड़ों देशवासी हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन से फोन पर बात कर कोरोना से लड़ाई में उनके सहयोग के लिए धन्यवाद कहा और आगे की योजना पर विचार विमर्श किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को कोरोना से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ बैठक की तो उसमें विवाद हो गया। मुद्दा उठा था ऑक्सीज़न की कमी का। केजरीवाल ने मुद्दा उठाया
राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री के अभिभाषण की सबसे ख़ास बात क्या है? संभवतः पहली बार उन्होंने अपनी किसी भूल को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है। उन्होंने बहुत स्पष्ट कहा कि देश को किसी भी सूरत में लॉकडाउन से बचाया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन को अंतिम विकल्प मानने की सलाह राज्य सरकारों को ऐसे समय दी है जब कुछ जगहों पर लॉकडाउन लगाया गया है और कुछ जगहों पर लगाने की बात चल रही है।
बीजेपी ने भी प्रधानमंत्री समेत बाक़ी नेताओं की रैलियों में भीड़ की संख्या पाँच सौ तक रखने की बात कही है। लेकिन न तो उसने किसी रैली में कटौती की बात कही है और न ही भीड़ को पाँच सौ तक सीमित रखने का कोई फ़ॉर्मूला बताया है।