लगता है कि मोदी सरकार की कोरोना पर कोई साफ़ योजना नहीं है और वह सिर्फ़ भाषणों से ही काम चलाना चाहते हैं। क्योंकि महामारी बेलगाम है और निपटने की सरकारी तैयारी लापता है।
क्या लॉकडाउन ग़लत तरह से लागू हुआ? कोरोना मरा नहीं, अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी। आशुतोष के साथ चर्चा में गोपाल अग्रवाल, अभय दुबे, घनश्याम तिवारी और आलोक जोशी।
देश के 16 प्रमुख स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोरोना पर मोदी सरकार के फ़ैसलों से क्यों नाराज़ हैं। क्या है उनकी 11 सिफ़ारिशें जिनको लागू करके अब भी स्थिति को सम्भाला जा सकता है। शैलेश की रिपोर्ट।
ग़रीब हो या अमीर, जब जनता 20 लाख करोड़ रुपये के सुहाने पैकेज वाले झुनझुने की झंकार सुनने को बेताब हो तब तीन दिनों से राहत कम और भाषण ज़्यादा बरस रहा है।
कहा जाता है कि समुद्र में जब ज्वार आता है तब ही मछलियाँ पकड़ी जाती हैं यानी संकट ही अवसर का बेहतर वक़्त होता है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माना कि यह संकट का समय है, लेकिन इसमें जीतना है।
कोरोना महामारी के बीच धार्मिक आधार पर भेदभाव किए जाने और इसे साम्प्रदायिक रूप दिए जाने की चर्चाओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि कोरोना महामारी निशाना बनाने से पहले जाति, धर्म, रंग, पंथ, भाषा या सीमा नहीं देखती है।
समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है कि राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री के चौथे सम्बोधन के बाद भी उम्मीदों की रोशनी किस तरह से ढूँढी जानी चाहिए? तीन सप्ताह के ‘लॉकडाउन’ को लगभग तीन सप्ताह (19 दिन) और बढ़ा दिया गया है।
लॉकडाउन बढ़ाने का मोदी का फ़ैसला सही या ग़लत? आखिर क्यों बढ़ाना पड़ा लॉकडाउन? क्या ग़रीब बे-बीमारी नहीं मारा जायेगा? आशुतोष के साथ चर्चा में आलोक जोशी, विजय त्रिवेदी, रामदत्त त्रिपाठी।
प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन को तीन मई तक बढ़ा दिया है। शायद इसके अलावा उनके पास कोई रास्ता भी नहीं था। लेकिन लॉकडाउन बढ़ने से सबसे ज़्यादा परेशान होंगे वे लोग जिनके सामने भुखमरी का ख़तरा मँडरा रहा है। वे लाखों मज़दूर भी बेचैन होंगे जो दूसरे राज्यों में फँसे हुए हैं। बल्कि अब तो उनका गुस्सा फटने की हदें छू रहा है। प्रधानमंत्री ने उनको राहत पहुंचाने के लिए कोई ऐलान नहीं किया है। ऐसे में ख़तरा इस बात का है कि कहीं वे लॉकडाउन तैडधकर उसी तरह से न निकल पड़ें जैसे पहले निकल गए थे।
लॉकडाउन से आने वाली दिक्कतों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माफ़ी माँगी है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन ज़रूरी था, लोगों को दिक्कतें आने लिए माफ़ी माँगता हूँ। वह 'मन की बात' को संबोधित कर रहे थे।
प्रधानमंत्री ने देशवासियों को जितना डराना संभव था, डरा दिया। यह भी कह दिया कि इससे बचने का एक ही तरीक़ा है कि घरों में बंद रहा जाए और इसके लिए लक्ष्मण रेखा का अच्छा उदाहरण दिया पर उसके अंदर रहने में सहायता का कोई आश्वासन नहीं दिया।
19 मार्च को जिस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी कोविड-19 के गंभीर ख़तरे पर राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे, अपने देश में कोरोना वायरस से संक्रमित कुल मामले 173 से ऊपर हो चुके थे। लेकिन इससे मरने वालों की संख्यी अभी तक सिर्फ़ 5 बताई गई है।