डॉ. मुकेश कुमार की पुस्तक ‘मीडिया का मायाजाल’ मीडिया विषयक चार दर्जन लेखों का संग्रह है जिसमें बीते चार-पाँच साल में मीडिया के स्वभाव में आए परिवर्तन चिंता के साथ व्यक्त हुए हैं।
ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों की तादाद कम ज़रूर हो गई है, मगर आंदोलनरत किसानों के हौसले कम नहीं हुए हैं और न ही उनका संकल्प ढीला पड़ा है। मगर सवाल उठता है कि सौ दिनों में उन्होंने क्या हासिल किया है? ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
एक फ़रवरी को तख्ता पलटने के बाद से म्यांमार के फौजी शासकों ने बर्मी जनता का जो दमन शुरू किया था, उसकी तीव्रता बढ़ती जा रही है और वह अधिक हिंसक होता जा रहा है।
ट्विटर पर कार्रवाई के बीच सूचना एवं तकनीकी मंत्री रविशंकर प्रसाद अपने ख़ास अंदाज़ में बारंबार कह रहे हैं कि विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को भारतीय संविधान एवं क़ानूनों का पालन करना ही पड़ेगा।
प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता मेधा पाटकर का कहना है कि वे मोदीजी को धन्यवाद देती हैं कि उन्होंने हमें आंदोलनजीवी कहा। वे आंदोलनजीवी होने पर गर्व करती हैं। पेश है वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की उनके साथ बातचीत-
29 जनवरी को सिंघु बॉर्डर पर हुए पथराव की तमाम सचाइयाँ सामने आ गई हैं। यह साफ़ हो गया है कि किसानों के आंदोलन से नाराज़ स्थानीय लोग इस प्रायोजित हिंसा में शामिल नहीं थे।
22 मई, 1987 को हुआ हाशिमपुरा कांड मुसलमानों की सामूहिक रूप से की गई स्वतंत्र भारत के इतिहास में हिरासती हत्याओं का सबसे बड़ा मामला था। इस पर विभूति नारायण राय ने 'हाशिमपुरा 22 मई' किताब लिखी है। पेश है इसकी समीक्षा।
कौन किसान आंदोलन में कराना चाह रहा है हिंसा ? किसानों को धमकी कौन दे रहा है? बंगाल चुनाव से पहले नेताजी सुभाष चेन्द्र बोस को लेकर आमने सामने बीजेपी और टीएमसी! देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के साथ। satya Hindi
जम्मू-कश्मीर के डीडीसी चुनाव में बीजेपी अभूतपूर्व सफलता के दावे कर रही है, मगर सचाई क्या है? पेश है चुनाव नतीजों पर कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की बातचीत।
किसान मानने के मूड में नहीं क्या करेगी सरकार? क्या भारत में ज़्यादा लोकतंत्र विकास रोक रहा है? गहलोत सरकार को क्यों लगा झटका? देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का विश्लेषण। Satya Hindi
किसान आंदोलन: आज भी नहीं बनी बात, होगा भारत बंद। यूपी का विपक्ष किसान आंदोलन पर ग़ायब क्यों है? खट्टर सरकार को ले डूबेगा किसान आंदोलन? देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का विश्लेषण। Satya Hindi