उत्तरप्रदेश में ऑक्सीजन, दवाईयों और बेड की कमी से हाहाकार मचा हुआ है और योगी सरकार फेल साबित हो रही है। मगर योगी कमियां दूर करने के बजाय धमकियों का सहारा ले रहे हैं।
कोरोना संक्रमण को रोकने में सरकार की नाकामी को टीवी एंकर सिस्टम की नाकामी बता रहे हैं, सरकार की नहीं। क्या मामला है, पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का व्यंग्य।
निचले असम में महाजोत का मुक़ाबला करने के लिए बीजेपी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और वोटों के डिवीज़न पर पूरा ज़ोर लगा रही है। धुबुड़ी स्थित वरिष्ठ पत्रकार विजय शर्मा का कहना है इससे बीजेपी-एजीपी को फ़ायदा हो सकता है। पेश है वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की उनसे बातचीत।
असम में एक अप्रैल को होने वाले मतदान के लिए तैयारियाँ पूरी कर ली गई हैं। दूसरे दौर की 39 सीटों के लिए 345 उम्मीदवार मैदान में हैं। पहले चरण की सैंतालीस सीटों से उलट इस चरण में मामला एकतरफ़ा नहीं होगा।
बीजेपी ने असम में भावी मुख्यमंत्री के रूप में किसी नेता को प्रोजेक्ट नहीं किया है इसलिए अटकलें तेज़ हो गई हैं कि अगर बीजेपी जीती तो मुख्यमंत्री कौन होगा। लोगों की राय इस मामले में बँटी हुई है, मगर हिमंत के चाहने वालों की संख्या ज़्यादा है? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट-
असम विधानसभा चुनाव के पहले दौर में 47 सीटों के लिए 27 मार्च को मतदान होने जा रहा है। कुल 126 विधानसभा सीटों में से इन 47 सीटों के लिए सबसे ज़्यादा अनुमान लगाए जा रहे हैं और भविष्यवाणियाँ भी की जा रही हैं।
शुरू में ऐसा लग रहा था कि काँग्रेस बदरुद्दीन अजमल से गठबंधन करके फँस गई है इसलिए ठीक से जवाब नहीं दे पा रही, लेकिन अब उसने पलटवार की रणनीति अपना ली है। ये नई रणनीति कितनी कारगर होगी?
सत्य हिंदी के सलाहकार संपादक ने गुवाहाटी से नॉर्थ गुवाहाटी की स्ट्रीमर से यात्रा के दौरान लोगों से बात करके ये जानने की कोशिश की वे वर्तमान सरकार और उसके कामकाज को लेकर क्या सोचते हैं।
असम के चुनाव में इस बार राज्य की राजनीति पलटती हुई दिख रही है। पहचान की राजनीति अब असमिया से हिंदुत्व की तरफ बढ़ रही है। इसने नए सवाल खड़े कर दिए हैं। असम से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट-
हिमंत बिस्व शर्मा छल-बल की राजनीति में माहिर हैं। काँग्रेस से बीजेपी में आने के बाद वे एकदम से हिंदुत्व के झंडाबरदार बन गए हैं और मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते रहे हैं। अगर पार्टी जीती तो वे मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
डॉ. मुकेश कुमार की पुस्तक ‘मीडिया का मायाजाल’ मीडिया विषयक चार दर्जन लेखों का संग्रह है जिसमें बीते चार-पाँच साल में मीडिया के स्वभाव में आए परिवर्तन चिंता के साथ व्यक्त हुए हैं।
ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों की तादाद कम ज़रूर हो गई है, मगर आंदोलनरत किसानों के हौसले कम नहीं हुए हैं और न ही उनका संकल्प ढीला पड़ा है। मगर सवाल उठता है कि सौ दिनों में उन्होंने क्या हासिल किया है? ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
एक फ़रवरी को तख्ता पलटने के बाद से म्यांमार के फौजी शासकों ने बर्मी जनता का जो दमन शुरू किया था, उसकी तीव्रता बढ़ती जा रही है और वह अधिक हिंसक होता जा रहा है।