शिरीष कुमार मौर्य का नया कविता संग्रह रितुरैण इस विश्वास को और भी पुख़्ता करता है कि एक कवि के रूप में उनकी यात्रा नए मार्गों का अन्वेषण करते हुए निरंतर आगे बढ़ रही है।
बिहार चुनाव में घटिया प्रदर्शन ने काँग्रेस नेतृत्व को एक बार फिर से निशाने पर ला दिया है। काँग्रेस के अंदर और बाहर दोनों ओर से उस पर हमले हो रहे हैं, लेकिन वह चुप है। क्या है इस चुप्पी की वज़ह? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट।
Suniye Sach। क्या कुणाल कामरा ने कुछ भी ग़लत नहीं बोला? भारत क्या दो मोहरों पर लड़ने के लिए तैयार है? राम माधव को क्यों किया जा रहा है बीजेपी में दरकिनार? देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का धारदार विश्लेषण। Satya Hindi
Suniye Sach। क्या ‘व्यक्तिगत आज़ादी’ सिर्फ़ अर्णब के लिए है? बिहार में बीजेपी बन गई है बड़ा भाई क्या करेंगे नीतीश? क्या राहुल गाँधी में पार्टी चलाने की योग्यता है? देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का विश्लेषण।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की जीत को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि बीजेपी तीन बार से सत्ता में रहने के बावजूद ज़्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही। यह कितना सच है?
आपने अकसर चैनल मालिकों और संपादकों को यह कहते हुए सुना होगा कि रिमोट तो दर्शकों के हाथ में है, पसंद उनकी है, वे चाहें तो कोई चैनल देखें या न देखें। लेकिन क्या यह इतनी सीधी सी बात है? क्या यह सचमुच में दर्शकों के हाथ में है?
ऊपर से देखने से लगता है कि टीआरपी के खेल ने न्यूज़ चैनलों को अराजक और ग़ैर-ज़िम्मेदार बना दिया है। मगर सचाई यह है कि इसमें सरकारों का भी बहुत बड़ा हाथ है। केबल टीवी अधिनियम को ठीक से लागू कराया जाता तो ऐसे हालात नहीं होते।
Suniye Sach। ट्रंप नहीं जीते तो होगा बवाल ? अर्णब की गिरफ़्तारी और प्रेस की आज़ादी में क्या है कोई संपर्क? देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के साथ। Satya Hindi
Suniye Sach। बिहार चुनाव में दूसरे चरण के मतदान से क्या मिले संकेत? पेरिस के बाद वियना में आतंकी हमले के मायने? देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के साथ.
न्यूज़ चैनलों की ओर से एनबीए अक्सर तर्क देता है कि उसके द्वारा बनाया गया आत्म-नियमन का तंत्र अच्छे से काम कर रहा है। लेकिन क्या सच में ऐसा है यह एक छलावा है? यह छलावा नहीं है तो फिर टीआरपी स्कैम कैसे हो गया?