प्रधानमंत्री मोदी की फिसलती जुबान खुद एक मुजरे का पर्याय बनकर रह गई है, जिसका प्रदर्शन वो बार-बार इस महान लोकतांत्रिक देश के सामने कर रहे हैं। मोदी ने अपने लिए इतिहास के जिन पन्नों का निर्माण किया है, उसके रचयिता वो खुद हैं। मोदी के मुजरे को टीवी मीडिया के चंद चापलूस इतिहास से गायब नहीं कर पाएंगे। स्तंभकार वंदिता मिश्रा की टिप्पणी इसी मुद्दे परः