वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम कहते हैं कि आज बीजेपी के प्रवक्ता और पत्रकार में फर्क मिट चुका है। मीडिया की सारी नज़रे अपने रहनुमा यानी पीएम मोदी पर ही रहती हैं। एक वक्त के हीरो रहे अर्णब आज मीडिया के पतन के रसातल से भी नीचे पहुँच चुके हैं। देखिए मीडिया को लेकर क्या है अजीत अंजुम की राय । Satya Hindi
Satya Hindi News Bulletin। सत्य हिंदी समाचार बुलेटिन। दिशा रवि केस : ‘पक्षपातपूर्ण और सनसनी वाली पत्रकारिता की हो रही’ । उन्नाव: लड़कियों के शरीर पर चोट के निशान नहीं- पुलिस
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिशा रवि मामले में कुछ न्यूज़ चैनलों को सनसनी फैलाने से बचने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि 'आम तौर पर मीडिया इस तरह के सनसनीखेज तरीक़े से जानकारी प्रसारित नहीं कर सकता है।'
मीडिया के लिए क्यों लीक किए जाते हैं किसी भी मामले का साक्ष्य? आख़िर कब तक चलेगा मीडिया ट्रायल? दिशा रवि के मामले में न्यूज़ चैनलों को क्यों जारी किया गया है नोटिस? देखिए वरिष्ठ पत्रकार नीलू व्यास की रिपोर्ट। Satya Hindi
किसान ‘कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग’ से लड़ रहे हैं और पत्रकार ‘कांट्रैक्ट जर्नलिज़्म’ से। व्यवस्था ने हाथियों पर तो क़ाबू पा लिया है पर वह चींटियों से डर रही है। ये पत्रकार अपना काम सोशल मीडिया की मदद से कर रहे हैं।
अर्णब गोस्वामी एक ऐसे टीवी मीडिया समाचार वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका मक़सद अभद्र टिप्पणियों के माध्यम से राजनेताओं का चरित्र हनन करना तथा ग़ैरज़रूरी बहस में उलझाकर जनहित से जुड़ी ज़रूरी ख़बरों को हाशिये पर डालना शामिल है।
ग़ैर ज़िम्मेदार टीवी कवरेज और मीडिया ट्रायल के लिये टीवी चैनेल काफ़ी बदनाम हो चुके हैं। उनकी तीखी आलोचना भी हो रही है। फिर भी वे सुधरने को तैयार नहीं है। अब दिल्ली की एक अदालत ने टीवी चैनलों को आड़े हाथों लिया है ।
सुप्रीम कोर्ट ने सूफ़ी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में अमिश देवगन को राहत देने से इनकार कर दिया है। यानी उन्हें कोर्ट में ट्रायल का सामना करना पड़ेगा।
लोकतांत्रिक होने के लिए उसमें हर एक वर्ग, जाति, समुदाय की मौजूदगी ज़रूरी है। लोकतांत्रिक होने की इस कसौटी पर भारतीय मीडिया खरा नहीं उतरता है क्योंकि इसमें वह विविधता नहीं है।
देश के 34 फ़िल्म-निर्माता संगठनों ने दो टीवी चैनलों और बेलगाम सोशल मीडिया के ख़िलाफ़ दिल्ली उच्च न्यायालय में मुक़दमा ठोक दिया है। यह देखना भी सरकार की ज़िम्मेदारी है कि कोई चैनल लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन न कर पाए और करे तो वह उसकी सज़ा भुगते।
क्या कोई टीवी देख किसी को जान से मार सकता है या जान से मारने की धमकी दे सकता है ? क्या कोई पुलिस कमिश्नर को भी धमकी दे सकता है ? आशुतोष के साथ चर्चा में आलोक जोशी, शाहिद सिद्दीक़ी और दीपक बाजपेयी।
एक एमबीबीएस का छात्र मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के परिवार को मैसेज भेजकर कमिश्नर को धमकी दे रहा था। पकड़े जाने पर छात्र ने कहा कि वह सुशांत सिंह राजपूत की मौत मामले में टीवी के कार्यक्रमों से प्रभावित था। क्या कुछ टीवी नफ़रत घोल रहा है?