क्या टीवी न्यूज़ एंकरों को इसका प्रशिक्षण दिए जाने की ज़रूरत है कि नफ़रत फैलाना किसे कहते हैं और निष्पक्ष होना किसे कहते हैं? जानिए एनबीडीएसए ने न्यूज़ नेशन टीवी चैनल को क्या क्या कहा।
कृषि कानूनों की वापसी के बाद मीडिया अंधभक्तों की तरह व्यवहार क्यों कर रहा है टीवी के ऐंकर इस कदर खिसियाए और झेंपे हुए क्यों हैं कृषि कानून वापस लेने पर वे प्रधानमंत्री मोदी तक से नाराज़ क्यों दिख रहे हैं किसानों के ख़िलाफ़ कुत्सित अभियान चलाने के लिए वह उनसे और देशवासियों से कब माफ़ी मांगेगा
यूपी में मीडिया रोज सवाल उठाता था कि विपक्ष कहां हैं ,पर सरकार कहां है यह सवाल नही उठाया कभी .लखीमपुर हादसे में दागी मंत्री से मीडिया न कोई सवाल पूछ रहा है न सरकार से .कब बर्खास्त होंगे टेनी ?कब गिरफ्तार होगा उनका पुत्र ?मीडिया की इसी एकतरफा भूमिका पर आज की जनादेश चर्चा
सत्ता और मीडियाकर्मियों के संबंधों पर आजकल कुछ ज़्यादा ही सवाल उठ रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी पत्रकार हैं जो अपनी पत्रकारिता से किसी भी क़ीमत पर समझौता नहीं करना चाहते हैं।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आख़िर देश में पॉजिटिव मीडिया क्यों चाहते हैं? खुद संघ के मुखपत्र ‘पाँचजन्य’ द्वारा एक उद्योग समूह को राष्ट्र-विरोधी बताना कितनी सकारात्मक ख़बर है?
देश में आज मीडिया की हालत क्या है और आम नागरिकों के लिए यह कितना बड़ा नुक़सान है? अधिकतर सम्पादक न तो अपने पाठकों को बताने को तैयार है और न ही कोई उससे पूछना ही चाहता है कि ख़बरों का ‘तालिबानीकरण’ किसके डर अथवा आदेशों से कर रहे हैं?
चीफ जस्टिस एन वी रामन्ना ने कहा कि मीडिया का एक हिस्सा हर चीज़ को सांप्रदायिक रंग दे देता है। यह बात उन्होंने तबलीगी जमात और कोरोना वायरस से जुड़ी खबरों के मामले में कही। उन्होंने कहा कि ऐसी चीजों से देश का नाम खराब होता है। साथ ही उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि समाचार माध्यमों में जिम्मेदारी गायब होती जा रही है। आलोक जोशी के साथ रामकृपाल सिंह, एन के सिंह, आशुतोष और हर्षवर्धन त्रिपाठी।
नफ़रत नहीं फैलानी की सुप्रीम कोर्ट की नसीहत किसको? दिल्ली दंगे में जांच को लेकर फिर पुलिस को लगी फटकार। तालिबान की वापसी पर खुश होने वालों पर क्यों भड़के नसीरुद्दीन? दिनभर की बड़ी ख़बरों का विश्लेषण-
Satya Hindi news Bulletin सत्य हिंदी समाचार बुलेटिन। ‘ख़बरों को सांप्रदायिक रंग देने से देश का नाम ख़राब होता है’ । CJI : सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म केवल ‘शक्तिशाली आवाज़ो’ का जवाब देते
क्या मोदी सरकार मीडिया से डर गई है? क्या इसीलिए उसने मीडिया संस्थानों पर छापे मारे हैं? मुकेश कुमार के साथ चर्चा में हिस्सा ले रहे हैं-संतोष भारतीय, प्रोनंजय गुहा ठाकुरता, क़ुरबान अली, शीतल पी सिंह, डॉ. राकेश पाठक
एक हिंदू महिला के धर्मांतरण के बाद उसके बारे में कथित दुर्भावनापूर्ण ख़बर प्रकाशित करने और जान पर ख़तरे का आरोप लगाए जाने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार, संबंधित मीडिया संस्थानों, न्यूज़ चैनलों की संस्था एनबीएसए को नोटिस जारी किया है।
विदेशी मीडिया में कोरोना की वजह से मोदी की तीखी आलोचना हो रही है । लेकिन भारतीय मीडिया चुप हैं । किससे डरता है । आशुतोष के साथ चर्चा में आलोक जोशी, शरत प्रधान, संजय सिंह, राजेश बादल, प्रेम कुमार ।
डॉ. मुकेश कुमार की पुस्तक ‘मीडिया का मायाजाल’ मीडिया विषयक चार दर्जन लेखों का संग्रह है जिसमें बीते चार-पाँच साल में मीडिया के स्वभाव में आए परिवर्तन चिंता के साथ व्यक्त हुए हैं।