न्यूज पोर्टल न्यूज क्लिक के खिलाफ सीबीआई ने भी एफआईआर दर्ज की है। सीबीआई की टीम बुधवार 11 अक्टूबर को न्यूज क्लिक के दफ्तर और संबंधित लोगों पर छापे मार रही है। हालांकि न्यूज क्लिक के संस्थापक संपादक प्रबीर पुरकायस्थ पहले से ही गिरफ्तार हैं।
विपक्षी गठबंधन इंडिया ने कुछ टीवी चैनलों के एंकरों के कार्यक्रमों के बहिष्कार की घोषणा की तो दक्षिणपंथी खेमा बिलबिला उठा। दरअसल ऐसे घृणा प्रचारकों की पहली बार पहचान हुई है। हालांकि जनता ने सोशल मीडिया पर पहले ही इनकी सूची जारी कर इन्हें घृणा प्रचारक घोषित कर दिया था। लेकिन जब यही बात पूरी जिम्मेदारी के साथ देश के विपक्षी दलों ने कही तो बेचारे विचलित हो गए। हमारे स्तंभकार अपूर्वानंद इस मुद्दे पर बहुत बेबाक राय रख रहे हैं, जरूर पढ़िएः
क्या विपक्षी दलों द्वारा टीवी ऐंकरों का बहिष्कार ग़लत है? क्या उनके इस क़दम को आपातकाल से जोड़ना ठीक है? क्या ऐंकरों को दुरुस्त करने का विपक्ष के पास यही एक रास्ता बचा था? क्या उन्हें चैनलों के मालिकों पर हल्ला बोलना चाहिए? क्या उन्हें कानून का दरवाज़ा खटखटाना चाहिए?
इंडिया गठबंधन ने कुछ टीवी एंकरों को उनके नफरत फैलाने वाले कार्यक्रमों की वजह से कुछ दिनों तक बहिष्कार करने का फैसला किया है। लेकिन इस पर भाजपा को सबसे बुरा लगा है। उसने प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरे में बता दिया। लेकिन सच इसके विपरीत है। भाजपा के दामन में भी कई दाग हैं, जिन्हें उसे इस मौके पर धोना चाहिए।
आरुषि, सुशांत सिंह राजपूत, रिया चक्रवर्ती, आर्यन ख़ान जैसे लोगों के मामले में जिस तरह का 'मीडिया ट्रायल' हुआ, क्या अब इस पर रोक लगेगी? जानिए, सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्देश दिया है।
वर्ष 2021 में जब कॉर्डेलिया क्रूज पर कथित 'रेव पार्टी' और आर्यन खेन का नाम आया था तो मुख्यधारा मीडिया ने इसे कैसे पेश किया था? आर्यन के ख़िलाफ़ किस तरह का माहौल बनाया गया था?
पाकिस्तान में पूर्व पीएम इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद बने हालात पर वहां के प्रतिष्ठित अखबार द डॉन ने खुलकर संपादकीय लिखा है। द डॉन अखबार ने साफ शब्दों में लिखा है कि इमरान खान को चुप कराकर या राजनीतिक सीन से हटाकर कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। लोग सेना से भी नाराज हैं, इसका इशारा कल की घटनाओं से मिल गया है। इसलिए इसे पढ़िए कि कोई बड़ा अखबार कैसे अपनी जिम्मेदारी निभाता है।
भारत में प्रेस की आजादी का जो हाल है, वो सामने है। लेकिन विश्व प्रेस आजादी दिवस के मौके पर हमें उन पत्रकारों को नहीं भूलना चाहिए, जो प्रेस की आजादी बरकरार रखने के लिए कुर्बानी देते आए हैं। वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग म्यांमार की घटना का जिक्र कर रहे हैं।
पुलवामा में मोदी सरकार की नाकामी पर जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक बहुत बड़ा खुलासा कर चुके हैं। लेकिन देश के मुख्यधारा के मीडिया ने सारे मामले पर ऐसे चुप्पी साध ली है, जैसे कुछ हुआ ही न हो। चिन्तक और सत्य हिन्दी के स्तंभकार अपूर्वानंद ने उसी खामोशी के अंदर झांकने की कोशिश की है।
भारत में प्रेस की आजादी खतरे में है। इसमें अब कोई दो राय नहीं है। हाल ही में मीडिया वन चैनल के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उससे यह बात शीशे की तरह साफ हो गई है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं पहले ही भारती मीडिया की आजादी को लेकर चिन्ताजनक बताया है। वरिष्ठ पत्रकार वंदिता मिश्रा ने अपने कालम में विभिन्न पहलुओं से इस मुद्दे को उठाया है।
विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए मुद्दों या सवालों पर मुख्य धारा का मीडिया की रिपोर्टिंग क्या उसी तरह होती है जैसी बीजेपी के मुद्दों या सवालों की होती है? क्या मीडिया की भाषा में कुछ अंतर दिखता है?
भारत में मीडिया की आजादी पर इतना बड़ा खतरा कभी नहीं आया। देश की मौजूदा सरकार यह कहती हुई सत्ता में आई थी कि वो मीडिया की आजादी को हर हालत में बरकरार रखेगी। लेकिन आज जो हालात हैं, वो सामने हैं। वरिष्ठ पत्रकार वंदिता मिश्रा ने प्रेस की आजादी के मौजूदा खतरों पर नजर डाली है।