सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र की फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) की अधिसूचना पर रोक लगाते हुए कहा कि जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट आईटी नियमों में 2023 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम निर्णय नहीं ले लेता, तब तक इस पर रोक रहेगी। जानिए पूरी खबरः
क्या सुधीर चौधरी, अमीश देवगन, अमन चोपड़ा और हिमांशु दीक्षित पत्रकारिता पर कलंक हैं? क्या इनके प्रोग्रामों को ज़हरीला करार देने से ये सुधर जाएंगे क्या तीन न्यूज़18, टाइम्स नाऊ नवभारत और आज तक इन ऐंकरों को हटाएंगे?
विपक्षी गठबंधन इंडिया ने कुछ टीवी चैनलों के एंकरों के कार्यक्रमों के बहिष्कार की घोषणा की तो दक्षिणपंथी खेमा बिलबिला उठा। दरअसल ऐसे घृणा प्रचारकों की पहली बार पहचान हुई है। हालांकि जनता ने सोशल मीडिया पर पहले ही इनकी सूची जारी कर इन्हें घृणा प्रचारक घोषित कर दिया था। लेकिन जब यही बात पूरी जिम्मेदारी के साथ देश के विपक्षी दलों ने कही तो बेचारे विचलित हो गए। हमारे स्तंभकार अपूर्वानंद इस मुद्दे पर बहुत बेबाक राय रख रहे हैं, जरूर पढ़िएः
पुलवामा में मोदी सरकार की नाकामी पर जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक बहुत बड़ा खुलासा कर चुके हैं। लेकिन देश के मुख्यधारा के मीडिया ने सारे मामले पर ऐसे चुप्पी साध ली है, जैसे कुछ हुआ ही न हो। चिन्तक और सत्य हिन्दी के स्तंभकार अपूर्वानंद ने उसी खामोशी के अंदर झांकने की कोशिश की है।
सुप्रीम कोर्ट को आख़िर क्यों कहना पड़ा कि न्यूज़ एंकर नफ़रत फैला रहे हैं? अदालत ने एनबीएसए से क्यों कहा कि आप समाज को बांट रहे हैं, हेट स्पीच देने वाले कितने एंकरों को ऑफ एयर किया?
प्रसारण के नियमों और सिद्धातों का उल्लंघन करने के लिए एंकर अमन चोपड़ा के चैनल को एक के बाद एक दो झटके लगे हैं। जानिए उन्होंने ऐसा क्या कार्यक्रम किया था कि एनबीडीएसए ने खिंचाई की और जुर्माना लगाया।
क्या टीवी न्यूज़ एंकरों को इसका प्रशिक्षण दिए जाने की ज़रूरत है कि नफ़रत फैलाना किसे कहते हैं और निष्पक्ष होना किसे कहते हैं? जानिए एनबीडीएसए ने न्यूज़ नेशन टीवी चैनल को क्या क्या कहा।
सत्ता और मीडियाकर्मियों के संबंधों पर आजकल कुछ ज़्यादा ही सवाल उठ रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी पत्रकार हैं जो अपनी पत्रकारिता से किसी भी क़ीमत पर समझौता नहीं करना चाहते हैं।
सुदर्शन टीवी के 'यूपीएससी जिहाद' कार्यक्रम को लेकर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संदेश मीडिया में जाए कि किसी भी समुदाय को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘यूपीएससी जिहाद’ जैसे कार्यक्रम को विषैला क़रार दिए जाने के बाद अब दिल्ली हाईकोर्ट ने फिर एक बार टीवी न्यूज़ चैनलों को संयम बरतने की हिदायत दी है।
क्या नरेंद्र मोदी सरकार डिजिटल मीडिया पर नकेल लगाना चाहती है? क्या वह उसकी पहुँच, धार, बढ़ते जनाधार और तेज़ी से संदेश पहुँचाने की क्षमता से घबराई हुई है और इस कारण उस पर नियंत्रण करना चाहती है?
सुदर्शन टीवी के सांप्रदायिक और भड़काऊ कार्यक्रम पर रोक लगाने का निर्णय देने के साथ-साथ न्यूज़ सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज़ चैनलों को सुधारने के लिए पाँच सदस्यीय कमेटी बनाने की बात कही है। लेकिन सवाल उठता है कि इस कमेटी में कितनी ताक़त होगी, इसमें कौन लोग होंगे और वे कैसे काम करेंगे? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट।