उत्तर प्रदेश में अखिलेश राज में हुए खनन घोटाले की जाँच की आँच कई अधिकारियों तक पहुँच रही है। सीबीआई ने यूपी में आईएएस, पीसीएस अफ़सरों के घर पर छापे मारे हैं।
लोकसभा चुनावों में ख़राब प्रदर्शन के बाद सदमे से अखिलेश नहीं उबरे हैं, मायावती घर पर बैठकें कर रही हैं, लेकिन प्रियंका बीजेपी की तरह संगठन खड़ा करने में जुट गई हैं। क्या वह योगी को चुनौती दे पाएँगी?
पहले चर्चा थी कि सपा मुखिया अखिलेश के चाचा शिवपाल की घर वापसी हो सकती है। शिवपाल के क़रीबियों की मानें तो उनकी पार्टी का अखिलेश की सपा से कोई मेल नहीं होगा। चुनावी हार के बाद भी आख़िर क्यों नहीं मिल पा रहे हैं दोनों?
लोकसभा चुनावों में बुरी तरह पस्त होने के बाद भी प्रियंका ने हार नहीं मानी है। चुनाव नतीजे सामने आने के तीन दिनों के भीतर ही टीम प्रियंका के सदस्यों को काम पर लगा दिया गया है।
यूपी में ऐसे नतीजे क्यों आए? कहीं इसलिए तो नहीं कि सपा-बसपा-रालोद जहाँ यादव, जाटव और मुसलिम बिरादरी के वोटों को सहेजने में आश्वस्त होकर बैठ गया वहीं बीजेपी ने 33 अन्य पिछड़ी व दलित जातियों को बटोरने का काम किया।
अपने डेढ़ दशक के लंबे राजनैतिक जीवन में पहली बार कड़े मुक़ाबले में फँसे राहुल गाँधी ने अमेठी का क़िला फ़तह करने के लिए पहली बार 100 से ज़्यादा बाहरी नौजवानों की फ़ौज उतार दी है।
उत्तर प्रदेश की हाई-प्रोफ़ाइल सीटों में से एक लखनऊ का हाल भी कुछ-कुछ बनारस जैसा हो गया है। तमाम दावों के बाद भी राजधानी लखनऊ से राजनाथ सिंह के मुक़ाबले कोई नामचीन हस्ती क्यों नहीं उतरी?
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की डूबती नाव को बचाने मैदान में उतरी प्रियंका गाँधी कम से कम बनारस में मोदी से दो-दो हाथ नहीं करेंगी। अगले दो-तीन दिनों में पार्टी इसका एलान भी कर देगी। तो क्या कांग्रेस डर गई?
यूपी के जातीय चक्रव्यूह में फँसी बीजेपी के लिए सहारा ग़ैर-यादव पिछड़े और ग़ैर-जाटव दलित नज़र आ रहे हैं। हालाँकि इस बिरादरी के चेहरे इस बार या तो नज़र नहीं आ रहे या उन्हें तवज्जो तक नहीं मिल रही।