बेगूसराय अब मार्क्स और लेनिन में नहीं, महादेव और शैलपुत्री में ज़्यादा विश्वास करता है। बेगूसराय के चुनाव में वामपंथी और भूमिहार समाज अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है।
कन्हैया के चुनाव लड़ने की घोषणा होते ही कन्हैया के ख़िलाफ़ घृणा अभियान शुरू हो गया है। यह राष्ट्रवादियों की ओर से नहीं, ख़ुद को वामपंथी कहनेवाले और दलित या पिछड़े सामाजिक समुदायों की ओर से है। ऐसा क्यों?
यह माना जा रहा था कि राष्ट्रीय जनता दल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के लिए बेगूसराय की सीट सीपीआई के दे देगा, पर ऐसा नहीं हुआ।