जेएनयू में हिंसा हुई। दर्जनों नकाबपोशों द्वारा। तेज़ाब, लाठी, लोहे की रॉड के साथ होस्टल में घुस कर निहत्थे छात्रों और अध्यापकों पर हमला किया गया। तीन घंटे तक। क्या विश्वविद्यालय प्रशासन, पुलिस, केन्द्रीय सरकार की शह के बिना यह संभव है? क्या इस हिंसा के लिए साज़िश रची गई। देखिए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और शीतल पी सिंह की चर्चा।
जेएनयू में रविवार रात को नकाबपोशों द्वारा घातक हमले के बाद पुलिस ने दावा किया है कि कुछ नकाबपोशों की पहचान की गई है। हालाँकि अभी तक एक की भी गिरफ़्तारी नहीं हो पाई है।
जेएनयू में कौन थे ये गुंडे? क्या ये सत्ताधारी दल से जुड़े थे? क्या ये किसी छात्र संगठन के थे? वे इतने इत्मीमान से निकल कैसे गए? एक भी पकड़ा क्यों न जा सका?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रविवार की रात हुए हमले पूर्व नियोजित थे, सोची समझी रणनीति के तहत किए गए थे और इसके पीछे कट्टर दक्षिणपंथी छात्र संगठन के लोग थे।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी जवाहरलाल विश्वविद्यालय के घायल छात्रों से मिलने के लिए ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के ट्रॉमा सेंटर गईं।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू में हिंसा के विरोध में छात्रों ने दिल्ली पुलिस के हेडक्वार्टर पर प्रदर्शन किया। छात्र हेडक्वार्टर के बाहर जमे हैं।
दिल्ली के लेफ़्टीनेंट गवर्नर अनिल बैजल ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों पर हुए हमले की कड़ी निंदा करते हुए पुलिस से कहा है कि वह कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में रविवार शाम को हिंसा भड़क गई। दर्जनों नकाबपोश लोगों ने कैंपस में छात्रों और अध्यापकों पर हमला कर दिया। इसमें विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष गंभीर रूप से घायल हो गईं।