देश के सबसे प्रमुख पोर्टल द प्रिंट के एक लेख के शीर्षक में एंकरों को लकड़बग्घों की संज्ञा दी गई है। अमेरिका की रहवासी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों की भारतीय मूल की एक वकील का कहना है कि भारतीय टीवी चैनलों में नरसंहार कराने की प्रतियोगिता चल रही है। ये कहाँ आ गए हम, पूछ रहे हैं शीतल पी सिंह।
भोपाल में लोग डूब रहे थे और बचाव के लिए गई नावें वीडियो बनवाने में लगी रहीं। गोताखोरों को मीडिया के लिए अच्छी फ़ुटेज देने के काम में लगा दिया गया। क्या मर गई इंसानियत?