यूपी में मीडिया रोज सवाल उठाता था कि विपक्ष कहां हैं ,पर सरकार कहां है यह सवाल नही उठाया कभी .लखीमपुर हादसे में दागी मंत्री से मीडिया न कोई सवाल पूछ रहा है न सरकार से .कब बर्खास्त होंगे टेनी ?कब गिरफ्तार होगा उनका पुत्र ?मीडिया की इसी एकतरफा भूमिका पर आज की जनादेश चर्चा
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आख़िर देश में पॉजिटिव मीडिया क्यों चाहते हैं? खुद संघ के मुखपत्र ‘पाँचजन्य’ द्वारा एक उद्योग समूह को राष्ट्र-विरोधी बताना कितनी सकारात्मक ख़बर है?
देश में आज मीडिया की हालत क्या है और आम नागरिकों के लिए यह कितना बड़ा नुक़सान है? अधिकतर सम्पादक न तो अपने पाठकों को बताने को तैयार है और न ही कोई उससे पूछना ही चाहता है कि ख़बरों का ‘तालिबानीकरण’ किसके डर अथवा आदेशों से कर रहे हैं?
चीफ जस्टिस एन वी रामन्ना ने कहा कि मीडिया का एक हिस्सा हर चीज़ को सांप्रदायिक रंग दे देता है। यह बात उन्होंने तबलीगी जमात और कोरोना वायरस से जुड़ी खबरों के मामले में कही। उन्होंने कहा कि ऐसी चीजों से देश का नाम खराब होता है। साथ ही उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि समाचार माध्यमों में जिम्मेदारी गायब होती जा रही है। आलोक जोशी के साथ रामकृपाल सिंह, एन के सिंह, आशुतोष और हर्षवर्धन त्रिपाठी।
नफ़रत नहीं फैलानी की सुप्रीम कोर्ट की नसीहत किसको? दिल्ली दंगे में जांच को लेकर फिर पुलिस को लगी फटकार। तालिबान की वापसी पर खुश होने वालों पर क्यों भड़के नसीरुद्दीन? दिनभर की बड़ी ख़बरों का विश्लेषण-
Satya Hindi news Bulletin सत्य हिंदी समाचार बुलेटिन। ‘ख़बरों को सांप्रदायिक रंग देने से देश का नाम ख़राब होता है’ । CJI : सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म केवल ‘शक्तिशाली आवाज़ो’ का जवाब देते
क्या मोदी सरकार मीडिया से डर गई है? क्या इसीलिए उसने मीडिया संस्थानों पर छापे मारे हैं? मुकेश कुमार के साथ चर्चा में हिस्सा ले रहे हैं-संतोष भारतीय, प्रोनंजय गुहा ठाकुरता, क़ुरबान अली, शीतल पी सिंह, डॉ. राकेश पाठक
एक हिंदू महिला के धर्मांतरण के बाद उसके बारे में कथित दुर्भावनापूर्ण ख़बर प्रकाशित करने और जान पर ख़तरे का आरोप लगाए जाने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार, संबंधित मीडिया संस्थानों, न्यूज़ चैनलों की संस्था एनबीएसए को नोटिस जारी किया है।
वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम कहते हैं कि आज बीजेपी के प्रवक्ता और पत्रकार में फर्क मिट चुका है। मीडिया की सारी नज़रे अपने रहनुमा यानी पीएम मोदी पर ही रहती हैं। एक वक्त के हीरो रहे अर्णब आज मीडिया के पतन के रसातल से भी नीचे पहुँच चुके हैं। देखिए मीडिया को लेकर क्या है अजीत अंजुम की राय । Satya Hindi
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिशा रवि मामले में कुछ न्यूज़ चैनलों को सनसनी फैलाने से बचने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि 'आम तौर पर मीडिया इस तरह के सनसनीखेज तरीक़े से जानकारी प्रसारित नहीं कर सकता है।'
किसान ‘कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग’ से लड़ रहे हैं और पत्रकार ‘कांट्रैक्ट जर्नलिज़्म’ से। व्यवस्था ने हाथियों पर तो क़ाबू पा लिया है पर वह चींटियों से डर रही है। ये पत्रकार अपना काम सोशल मीडिया की मदद से कर रहे हैं।
अर्णब गोस्वामी एक ऐसे टीवी मीडिया समाचार वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका मक़सद अभद्र टिप्पणियों के माध्यम से राजनेताओं का चरित्र हनन करना तथा ग़ैरज़रूरी बहस में उलझाकर जनहित से जुड़ी ज़रूरी ख़बरों को हाशिये पर डालना शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने सूफ़ी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में अमिश देवगन को राहत देने से इनकार कर दिया है। यानी उन्हें कोर्ट में ट्रायल का सामना करना पड़ेगा।
लोकतांत्रिक होने के लिए उसमें हर एक वर्ग, जाति, समुदाय की मौजूदगी ज़रूरी है। लोकतांत्रिक होने की इस कसौटी पर भारतीय मीडिया खरा नहीं उतरता है क्योंकि इसमें वह विविधता नहीं है।