नरेंद्र मोदी की सरकार के आठ मंत्रालयों ने उन संपत्तियों की सूची बनाई है, जिन्हें बेच दिया जाएगा या दूसरे तरीकों से निजी क्षेत्र को देकर पैसा कमाया जाएगा। इस ज़रिए 2.5 लाख करोड़ रुपए उगाहे जाएंगे।
केंद्र सरकार वसूली बढ़ने का ढिढोरा तो पीट रही है पर राज्यों का हिस्सा कम हो रहा है यह नहीं बता रही है। वसूली बढ़ने के दावों पर बात नहीं करने के लिए इतना भर ही कम नहीं है।
ऐसे समय जब पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें आसमान छू रही हैं और केंद्र व राज्य सरकारों की कमाई का ज़रिया बन चुकी हैं, सवाल यह उठता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका दूरगामी असर क्या पड़ेगा।
सवाल है कि सरकार ने रोज़गार के मौके बनाने के मामले में क्या किया है, वह कितनी कामयाब रही है और कितनी नाकाम। प्रधानमंत्री और बीजेपी भले ही वायदा पूरा न कर सके हों, पर क्या उन्होंने इसकी कोई ईमानदार कोशिश भी की या यह एक और ज़ुमला था?
सरकार का मानना है कि अम्बानी (याने कॉरपोरेट घरानों) पर टैक्स लगाकर उस पैसे से ग़रीबों की स्थिति बेहतर करने की जगह सरकार को विकास के पहले दौर में ग़रीबों की निरपेक्ष ग़रीबी जैसे मौलिक सुविधाओं का अभाव ख़त्म करना होगा। उसके अनुसार सापेक्ष गरीबी (जो शुद्ध रूप से असामनता-जनित होती है) तो अमेरिका में भी है।
अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के संकेत लेकिन क्यों नहीं बढ़ेगा रोज़गार? सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को दी हरी झंडी। मध्यप्रदेश में झड़प के एक दिन बाद ही घर क्यों ढहाए गए? देखिए वरिष्ठ पत्रकार नीलू व्यास का विश्लेषण। Satya Hindi
बेरोज़गारी के जो नये आँकडे आये हैं वो और भी बड़े संकट की ओर इशारा कर रहे हैं। लॉकडाउन ख़त्म होने और अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के शुरुआती संकेत मिलने के बावजूद दिसंबर में बेरोज़गारी की दर पिछले छह महीनों में सबसे ऊपर दर्ज की गई।
क़र्ज़ देने वाले अनाधिकृत मोबाइल एप के चंगुल में फँस कर पाँच लोगों की आत्महत्या से डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म पर काम करने वाली माइक्रो-फ़ाइनेंस कंपनियों के बड़े रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है। सूक्ष्म क़र्ज़ प्रणाली और उनके कामकाज पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है।
कोरोना और लॉकडाउन की वजह से तबाह भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। दिसंबर महीने में जीएसटी उगाही में 11.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह एक लाख करोड़ रुपए के ऊपर पहुँच गई।
बहुत बुरा था 2020! लेकिन क्या इतना कहना काफी है? कतई नहीं। मौत के मुँह से वापस निकलने का साल था 2020। यूं नहीं समझ आता तो उन लोगों की सोचिये जो 2020 में कोरोना के शिकार हो गए।